ऐसे प्रश्न विषय की सहीह जानकारी ना होने की वजह से ही अपने वजूद मैं आते है …जिसको लेकर स्वयं मुसलमान असमंज्य्स मैं पड़ जाते है जबकि कुरान के ताल्लुक से यह समझना चाहिए असल मैं कुरान है क्या मतलब जो लिखी हुई चीज़ है वही है असल कुरान या फिर कुछ और है …हम जानते ही है जो कुरान नाजिल हुआ था वह नबी सल्ल० के कल्ब मैं नाजिल हुआ या फिर जिब्रील अ स द्वारा वही के तौर पर मिला जिसको नबी सल्ल० ने पढ़ कर सुनाया यह जो पढ़ कर सुनांना था असल मैं तिलावत के ऐतबार से था यानी पढने के ऐतबार से (वह कुरान असल मैं महफूज़ है) जिसको लिखा बाद मैं गया,(लिपि बद्ध किया गया )..
बाद मैं का अर्थ यह है नबी सल्ल० ने कहा और बाद मैं बहुत सारे लोगो ने याद किया और कुछ लोगो ने उसको लिखा और बाद मैं फिर लिखने की चीज़ें चेंज होती गयी तो लिखने की चीज़ तो चेंज हो सकती है ..लकिन लिखा इसलिए जाता है ताकि कि जो लिखा जा रहा है वह समझ मैं आये तो as long as अगर आप एक ही चीज़ बारम्बार पड़ रहे है ज़ाहिर है उसमे अंतर नहीं होगा …मतलब लफ्ज़(शब्द) अगर एक ही है तो लिखने के तरीके मैं अंतर नहीं होगा ..
. उदहारण के तौर पर कुरान अरबिक मैं नाजिल हुआ अब उसका कोई इंग्लिश मैं अनुवाद करे यानी अरबी के शब्द इंग्लिश मैं लिखे मिसाल के तौर पर मैं लिखू “alhamdu lilla he rabbil aalamin” अब मैं ऐसे लिखू तो कोई कहे भाई कुरान तो तब्दील हो गया …नाजिल तो हुआ था अरबी मैं और आप यहाँ इंग्लिश मैं लिख रहे है खुद सोचिये क्या यह तर्क संगत होगा ?? कुरान के शब्द ”अलहम्दु लिल्लाही रब्बिल आलमीन ” यह जो पढ़ा जायेगा यह महफूज़/संरक्षित है मतलब तिलावत के ऐतबार से या जो नाजिल हुआ उस ऐतबार से…. इसको लिखना तो secondary step होगा …
मतलब इसको लिखना या इसकी इमेज बना लेना यह सब बाद की चीज़ है .. . अब आते हैं मूल प्रश्न पर तो हज्जाज बिन युसूफ ने जो ज़बर/ज़ेर लगाए उससे पढने मैं तो कोई अंतर नहीं आता है ना ..मतलब शब्द तो आप वही पढ़ रहे है पहले भी “‘अलहम्दु लिल्लाहे रब्बिल …”” पढ़ रहे थे और बाद मैं भी वही “”अलहम्दु लिल्लाहे रब्बिल …”” पढ़ रहे है यह ज़बर/ज़ेर तो इसलिए डाला गया था ताकि जो नॉन अरब हैं जिनकी भाषा ख़ालिस/pure अरबी नहीं है, ….(क्यूंकि अरबी मैं भी बहुत तरीके की अरबी होती है अलग अलग जगहों पर अरबी पढने का अंदाज़ बदल जाता है जैसे खुद भारत मैं हिंदी पढने और बोलने का अंदाज़ दुसरे राज्यों मैं जाकर बदल जाता है ), तो यह ensure/पक्का करने के लिए कि एक ही चीज़ समझा जाये इसलिए ज़ेर/ज़बर को लगाया गया …पढ़ा जो जायेगा उस ऐतबार से कुरान महफूज़ है(पढने के ऐतबार से)…अलहम्दु लिल्ल्हाहे रब्बिल ..”‘ यह महफूज़ है ..इसमे तब्दाली/बदलाव नहीं हो सकता …इस ही तरह पूरे कुरान मैं अब कोई किसी शब्द को खीच कर पढ़े या धीरे पढ़े उससे भी कोई अंतर नहीं पड़ता बोलने मैं शब्द वही सामान होने चाहिए अब कोई लिख रहा है लिखने मैं कोई जरे/ज़बर लगा दे.. दो तीन और निशान/arrow/चिन्ह बना दे तो उससे भी कोई अंतर नहीं पड़ता(बात सिर्फ उच्चारण से संबंधित होती है)…असल कुरान वोह नहीं है जिसकी महफूज़ की बात की गयी असल कुरान वोह है जो नबी सल्ल० पर नज़िल किया गया और नबी सल्ल ने पढ़ा जो पढ़ कर आगे फैल रहा है वह कुरान है जो महफूज़ है …
. रही दूसरी बात यह(जैसा प्रश्न मैं है) कि अल्लाह ने पहले वादा किया या बाद मैं ..????
अल्लाह का जो काम होता है कोई भी अम्र जो अल्लाह का इस दुनिया मैं नाफ़िज़ होता है वह सबब/असबाब/कारण से होता है …कुरान से पहले जो किताबें?अल्लाह से सन्देश/सहीफे इस दुनिया मैं आये ..उस वक़्त संसार मैं Transportation/यातायात और communication/संचारण के ऐतबार से इतना progress/प्रगति/विकास नहीं हुआ था कोई भी चीज़ या कोई भी सन्देश पूरे संसार मैं फैल सके या महफूज़/संरक्षित रह सके कुरान के नाजिल होने के बाद वह सबब/कारण दुनिया मैं आ गए यानी वोह means of transportation/means of communication हो गया कि कोई सन्देश दुनिया भर मैं फैल सके और वह कारण वजूद मैं आ गए जिससे सन्देश preserve किया जा सके हिफाज़त की जा सके जैसे पेपर/प्रिंटिंग प्रेस/इंटरनेट/कंप्यूटर … ..तो अल्लाह हिफाज़त करेगा का मतलब यह है कि अल्लाह वह सबब/कारण वजूद मैं ला देगा जिससे हिफाज़त हो सकेगी….
लेखन : फ़ारूक़ खान