क्या कुरान में एक आदमी की गवाही दो औरत के बराबर है ?

  • Post author:
  • Post category:Uncategorized
  • Post comments:0 Comments

जी नहीं ऐसी कोई बात नहीं है. कुरआन में औरत और मर्द की गवाही बराबर है देखये सूरेह नूर आयत 8. वो मामला जिसके बारे में ये समझा जाता है कि औरत की गवाही मर्द के मुकाबले में आधी होती है आम गवाही से बिलकुल अलग है.
उस पर आने से पहले ये बात ज़रूर याद रखिये कि आम गवाही जो जुर्म के मामलों में दी जाती है वहां आधी और पूरी गवाही का कोई कोंसेप्ट नहीं होता, वहां तो सिर्फ ये देखा जाता है कि जुर्म को होते हुए किसने देखा है और किसने नहीं देखा और कौन सच बोल रहा है. हो सकता है कि किसी केस में एक औरत सच्ची गवाह हो और उसके मुकाबले में 10 मर्द झूटे गवाह खड़े हों, तो भी अगर जज ये समझता हो कि औरत सच बोल रही है और ये दस मर्द झूटे हैं तो वो उस औरत के मुताबिक ही फेसला करेगा. तो जुर्म के मामले में औरत मर्द होना या तादाद ज़्यादा कम होना कोई मायने नहीं रखता.


असल में वो हुक्म सूरेह बक्राह आयत 282 में आया है. वहां जो बात हो रही है वो सादा अल्फाज़ में ये है कि अल्लाह ने हुक्म दिया है कि अगर तुम लम्बे समय के लिए उधार या लेनदेन का कोई मामला कर रहे हो, तो उसे जिन्हें तुम पसंद करो (यानि क़र्ज़ देने वाला भी और लेने वाला भी) ऐसे कम से कम दो मर्द गवाहों की मौजूदगी में लिख लिया करो. और अगर दो मर्द ना मिल सकें तो एक मर्द और दो औरतें कर लो.


ये लिखने और गवाहों के साइन लेने का मकसद ये है कि अगर कल को इस लेनदेन के मामले में कोई एक बेईमानी पर उतर आए और मामला अदालत में पहुंचे तो गवाहों की मदद से केस को सुलझाने में आसानी हो.


अब यहाँ वो सवाल है कि एक मर्द के बदले गवाह बनाने ले लिय दो औरतों को क्यों कहा गया है ? तो ये बहुत सादा बात है क्योंकि एक तो दूसरों के मामले में गवाही देना एक बड़ी ज़िम्मेदारी का काम है और शरीयत में यह भी है कि गवाही देने वाला झूठा साबित हो तो उसको भी सज़ा दी जाएगी तो ऐसे सख्त मामले में यहाँ औरत को आसानी देने के लिए उसकी एक साथी को मुक़र्रर करने का हुक्म है. ये इस्लाम का आम मिजाज़ है कि वो औरत को आसानी देता है. मिसाल के लिए औरत पर मस्जिद में जाकर नमाज़ पढ़ना या एत्काफ करना ऐसे ज़रूरी नहीं किया गया जैसे मर्दों पर किया गया है, या लड़ाई में जाना वगैरह.


यहाँ इस आयत में भी साफ़ ज़ाहिर है कि यही पसंद किया गया कि पहले तो औरतों को ऐसे मामलों में ना घसीटा जाए लेकिन अगर मजबूरी है तो इस आयत में भी औरत को आसानी देना ही मकसद है, वो इसलिए कि आम तौर पर औरतें घर संभालती हैं तो उनका अदालतों में पेश होना वहां जज और दूसरे लोगों के सामने गवाही देना जहाँ अक्सर मर्द ही मर्द होते हैं ज़हनी तौर पर एक घरेलु औरत के लिए आसान काम नहीं होता. ऐसे माहोल में एक अकेली औरत घबरा सकती है जिसका असर उसकी गवाही पर पड़ सकता है वो उस मामले का कुछ हिस्सा भूल सकती है या कुछ कन्फ्यूज़ हो सकती है, इसलिए उसको सहारा देने के लिए उसके लिए आसानी करने के लिए उसकी एक साथी को मुक़र्रर करने का हुक्म है. ये ऐन फितरी चीज़ है और बहुत अच्छी चीज़ है.

लेखन : मुशर्रफ़ अहमद

Leave a Reply