”” तुम्हारी स्त्रियों तुम्हारी खेती है। अतः जिस प्रकार चाहो तुम अपनी खेती में आओ और अपने लिए आगे भेजो; और अल्लाह से डरते रहो; भली-भाँति जान ले कि तुम्हें उससे मिलना है; और ईमान लानेवालों को शुभ-सूचना दे दो (223) सूरह बक़रा…
इस आयत में कहां लिखा है कि ”” और भविष्य का सामान अर्थात औलाद पैदा करो।””??
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मर्द और औरत जब निकाह के ज़रिये एक दूसरे के साथी बनते हैं तो इसका अस्ल मक़सद(intention) यौन तृप्ति ही नहीं होता बल्कि यह उसी क़िस्म (Type) का बामक़्सद(motive) ताल्लुक़(relation) है जो किसान और खेत के दर्मियान(between) होता है …इसमें आदमी को इतना ही संजीदा (Serious) होना चाहिये जितना खेती का मंसूबा(plans) बनानें वाला संजीदा(serious) होता है..यानि इस आयत का वह मतलब नहीं जो इस्लाम से कुण्ठा रखनें वाले निकालते हैं …यह आयत तो ख़ुद उल्टा नसीहत/ आदेश देती है कि औरत के साथ किस प्रकार रहा जाये बजाये उनको इस्तेमाल की चीज़ समझे….
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इस आयत का सीधा और साधाहपण सा भावार्थ है जैसे किसान के लिये उसका खेत सबसे प्रिय होता है वह अपने खेत का रख रखाव /सिंचाई care taking सर्वोपरि रखता है….
और जिस प्रकार उसकी देखबाल हर संभव तरीके से,( जिस प्रकार चाहो तुम अपनी खेती में आओ), करता है इस ही प्रकार पति को अपनी पत्नी के साथ व्यहार करना चाहिये……
लेखन : फ़ारूक़ खान