वैज्ञानिक कहते है …धरती गोल है …..कुरान के अनुसार …….धरती चपटी है ……क्या ये सही है………

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इस विषय पर भ्रम मैं पड़े लोग अक़्सर यह कहते है कि क़ुरान मैं पृथ्वी को चपटा बताया गया है… जबकि ऐसा नहीं है…दहाहा का समान्यतया अर्थ किसी चीज़ को फैलाना और विस्तार देना होता है और सूरह नाज़ियात की आयत 30 ka. अनुवाद भी अक़्सर यहीं किया जाता है कि अल्लाह नें धरती को विस्तार दिया या फैलाया ज़ाहिर है हमारी पृथ्वी विस्तृत ही है जो लोग धरती को विस्तृत करने का अर्थ इसको ”चपटा’ करना लगाते हैं तो यह उनके अपने दिमाग़ का फितूर हैं या उपज है… क्यूंकि विस्तृत चीज़ चपटी ही होगी गोल नहीं हो सकती ऐसा कोई नियम/सिद्धांत नहीं… उदाहरण के लिए एक बड़े से मटके पर चलती हुई चींटी के लिए मटके की सतह क्या फ़ैली हुई या विस्तृत नहीं होगी…??पृथ्वी का अर्धव्यास यानि त्रिज्जा भूमध्य रेखा पर 6270 किलोमीटर और ध्रुवों पर 6035 किलोमीटर हैं जिससे सिद्ध होता हैं कि पृथ्वी एक दम गोल नहीं है शुतुरमुर्ग के अंडे के समान ध्रुवों से थोड़ी चपटी.. (अंडा भी ऐसा ही होता है )दहाहा का दूसरा अर्थ किसी चीज़ को अंडे जैसा बनाना भी होता है अगर गूगल पर अरबी वर्ड دَحاها लिखिए… इससे सम्बंदित आपको कई चित्र आ जायेंगे जिससे आप समझ जायेंगे अरबी लोग इस शब्द का और क्या अर्थ लेते हैं..

प्राराम्भिक ज़मानों में लोग विश्वस्त थे कि ज़मीन चपटी है, यही कारण था कि सदियों तक मनुष्य केवल इसलिए सुदूर यात्रा करने से भयाक्रांति करता रहा कि कहीं वह ज़मीन के किनारों से किसी नीची खाई में न गिर पडे़!सर फ्रांस डेरिक वह पहला व्यक्ति था जिसने 1597 ई0 में धरती के गिर्द ( समुद्र मार्ग से ) चक्कर लगाया और व्यवहारिक रूप से यह सिद्ध किया कि ज़मीन गोल (वृत्ताकार ) है। यह बिंदु दिमाग़ में रखते हुए ज़रा निम्नलिखित क़ुरआनी आयत पर विचार करें जो दिन और रात के अवागमन से सम्बंधित है: ‘‘ क्या तुम देखते नहीं हो कि अल्लाह रात को दिन में पिरोता हुआ ले आता है और दिन को रात में ‘‘ (अल-.क़ुरआन: सूर: 31 आयत 29 ) यहां स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि अल्लाह ताला ने क्रमवार रात के दिन में ढलने और दिन के रात में ढलने (परिवर्तित होने )की चर्चा की है ,यह केवल तभी सम्भव हो सकता है जब धरती की संरचना गोल (वृत्ताकार ) हो। अगर धरती चपटी होती तो दिन का रात में या रात का दिन में बदलना बिल्कुल अचानक होता ।निम्न में एक और आयत देखिये जिसमें धरती के गोल बनावट की ओर इशारा किया गया है: उसने आसमानों और ज़मीन को बरहक़ (यथार्थ रूप से )उत्पन्न किया है ,, वही दिन पर रात और रात पर दिन को लपेटता है।,,(अल.-क़ुरआन: सूर:39 आयत 5)यहां प्रयोग किये गये अरबी शब्द ‘‘कव्वर‘‘ का अर्थ है किसी एक वस्तु को दूसरे पर लपेटना या overlap करना या (एक वस्तु को दूसरी वस्तु पर) चक्कर देकर ( तार की तरह ) बांधना। दिन और रात को एक दूसरे पर लपेटना या एक दूसरे पर चक्कर देना तभी सम्भव है जब ज़मीन की बनावट गोल हो । ज़मीन किसी गेंद की भांति बिलकुल ही गोल नहीं बल्कि नारंगी की तरह (geo-spherical) है यानि ध्रुव (poles) पर से थोडी सी चपटी है।

लेखन : फ़ारूक़ खान

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