फिर बात ये भी है कि ईश्वर ने शिर्क की गुंजाईश (संभावना) ना तो इंसानी फितरत (प्रकृति) में रखी है।- इसका मतलब है हर कोई अपने अंतर्मन में ये गवाही पाता है कि ईश्वर जैसा कोई नहीं हो सकता वो अपने आप में अकेला है।
दूसरा ना ब्रह्माण्ड में शिर्क के लिए कोई दलील है।- इसका मतलब ये है कि हम ब्रह्माण्ड में देखते है तो सब कुछ एक ही प्लान का हिस्सा नज़र आता है, जैसे समुद्र से बादल का बनना, फिर उन बादलों से ज़मीन पर बारिश होना, फिर उस बारिश से पौधों का उगना, उन पौधों से सब जीवों को भोजन और ऑक्सीजन मिलना।
फिर थोड़ा और गहराई में जाएं तो मौसम बदलना, रात दिन होना, सूरज चाँद वगैरह का धरती से सही सही दूरी पर होना वगैरह ये सब प्रमाण हैं कि इन सब का मालिक एक ही हो सकता है।
इसी तरह ना इल्हामी किताबों में शिर्क के लिए कोई गुन्जाएश है।- यानि उसने कोई ऐसा पैगम्बर (दूत) नहीं भेजा जिसने ये कहा हो कि तुम ईश्वर के साथ उसके अधिकारों में मुझे भी शामिल करो।
तो एक ही ईश्वर के होने की इतनी सारी दलीलें इंसान के चारो तरह फैली होने के बाद भी अगर कोई शिर्क करता है तो इससे बड़ा ज़ुल्म और क्या है ?
इसी लिए कुरआन सूरेह लुकमान 13 में कहता है ”इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं कि शिर्क अज़ीम ज़ुल्म है।”
शिर्क एहसान फरामोशी भी है, वो इस लिए कि इंसान के एक एक साँस तक की व्यवस्था तो ईश्वर ने की है, तो इंसानियत तो यही है कि उसका आभार व्यक्त किया जाए, लेकिन शिर्क करने वाला ईश्वर की दी हुई हर चीज़ के लिए ईश्वर को छोड़ किसी और का आभार व्यक्त कर रहा होता है, और उससे ऐसा प्यार उसका ऐसा सम्मान कर रहा होता है जैसा ईश्वर का होना चाहिये था। गौर कीजये तो ये एक बहुत बड़ी नैतिक (अख्लाकी) बुराई है।
शिर्क एक बुराई इस लिए भी है कि ईश्वर के साथ शिर्क करने वाला शिर्क के नतीजे में उस उदेश्य से भी बिलकुल बे परवाह हो जाता है जिस उदेश्य से ईश्वर ने उसे धरती पर भेजा है।
तो ये समझ लेने के बाद कि शिर्क एक बहुत बड़ी बुराई है जिसके लिए इंसान के पास कोई बहाना तक नहीं है। आइये अब समझते हैं कि शिर्क की सज़ा क्यों दी जाएगी ?
इसमें सबसे पहले तो बता दूँ आप के दिए हुए तीनो ऑप्शन ही गलत है। जिन कारणों से ईश्वर किसी भी जुर्म की सज़ा देगा वो कारण आप के दिए हुए ऑप्शन में है ही नहीं। आप गौर कीजये तो आप के दिए ऑप्शन के हिसाब से तो ईश्वर को शिर्क ही क्या किसी भी पाप की सज़ा नहीं देनी चाहिये।
मुख्यतः तीन कारण हैं जिन कारणों से शिर्क की सज़ा दी जाएगी।
पहला और सबसे बड़ा कारण है ईश्वर का न्याय के साथ स्थापित (कायम) होना। ईश्वर ने ये दुनियां न्याय के सिद्धांत पर बनाई, यही कारण है कि उसने इंसान फितरत में इन्साफ पसंदी रख दी है, हर इंसान न्यायप्रिय है और हर किसी की चाहत होती है कि दुनियां में सबको पूरा न्याय मिल सके। ईश्वर ने कुरआन में इंसानों को भी बार बार आदेश दिया कि वो हर हाल में न्याय करें किसी के साथ अन्याय ना करें, और वो खुद भी इससे पाक है कि वो कभी न्याय से एक इंच भी हटे।
अल कुरआन 3:18 में है कि -”ईश्वर गवाह है और सब फ़रिश्ते भी और ज्ञान वाले लोग भी कि उसके सिवा कोई ईश्वर नहीं और वो न्याय के साथ स्थापित (क़ायम) है…”
अगर वो शिर्क की सज़ा ना दे तो ये उन लोगों के साथ ना इंसाफी होगी जिन्होंने शिर्क नहीं किया था। जैसे जिसने सारी ज़िन्दगी ईश्वर की तरफ से झूट बोला और जिसने कभी झूट नहीं बोला वो बराबर नहीं हो सकते, अगर ईश्वर के यहाँ वो दोनों बराबर हैं, तो ये उनके साथ न्याय नहीं है जिन्होंने सच्चाई का साथ निभाया।
तो अगर ईश्वर आज्ञाकारी और लापरवाह, झूटे और सच्चे शरीफों और मुजरिमों को बराबर कर देंगे तो ये न्याय ना होगा और ये ईश्वर की शान के खिलाफ है कि वो न्याय ही ना कर सके।
सूरेह अल क़लम 35,36 में है – ”क्या हम आज्ञाकारियों को मुजरिमों के बराबर कर देंगे ? तुम्हारी अकलों को क्या हो गया है तुम ये कैसा फैसला कर बैठे हो।”
दूसरा कारण है कि ईश्वर लापरवाह नहीं है बल्कि वो एक स्वाभिमानी ईश्वर है। ये तो सही है कि ईश्वर को किसी की ज़रूरत नहीं लेकिन इसका मतलब ये हरगिज़ नहीं कि वो बेपरवाह ईश्वर है या कोई कुछ करता फिरे उसे कोई परवाह नहीं होती, या दुनिया को बना कर भूल चुका है।
हम जानते हैं कि लापरवाही या बे-हिसी एक बुराई है और ईश्वर हर बुराई से पाक है। तो एक ये भी कारण है जिस से वो हर अच्छाई और हर बुराई का फल देगा।
तीसरा कारण है दुनियां में अपने होने के उदेश्य से हटने का परिणाम।
ईश्वर ने इंसान को व्यर्थ ही पैदा नहीं किया है। (व्यर्थ काम करना भी एक बुराई है)
इंसान का उदेश्य है स्वेच्छा से ईश्वर के बताऐ हुए मार्ग पर चलना, वो भी ईश्वर को आखों से देखे बिना।
हम देखते हैं सितारों से ले कर समुन्द्र की छोटी मछली तक ब्रह्माण्ड की हर चीज़ ईश्वर की बनाई हुई प्रकृति के अनुसार अपने हिस्से का जीवन गुज़ार रही है, सिर्फ इंसान ही है जो ईश्वर की बनाई हुई प्रकृति के नियमों में बंधा नज़र नहीं आता। मसलन इंसानी फितरत तो थी कि सच बोला जाए लेकिन इंसान अपनी फितरत के खिलाफ जाकर झूट भी बोलता है। इसी तरह
इंसानी प्रकृति में एक ईश्वर के होने का एहसास तो है (जिसे कुरआन ने 7:172 में बताया है कि कब और कैसे ये अहसास इन्सान की प्रकृति में रखा गया था) लेकिन इंसान अपनी फितरत के खिलाफ जा कर शिर्क भी करता है।
ईश्वर ने ये दुनियां इसी परीक्षा के सिद्धांत पर बनाई है, यहाँ हर समय हर इंसान एक परीक्षा से गुज़र रहा होता है।
शिर्क करने का नतीजा ये निकलता है कि उस इंसान को ईश्वर की परीक्षा पास करने की कोई ज़रूरत महसूस नहीं होती, क्यों कि वो मान चुका है जिन्हे वो ईश्वर का शरीक कर रहा है वो उसे ईश्वर के कानून के पंजे के छुड़ा लेंगे।
हम जो भी यहाँ अच्छा या बुरा करते हैं जल्दी या देर से उसका एक परिणाम ज़रूर निकलता है यह भी ईश्वर का एक सिद्धांत है जिसे हम अपनी आँखों से भी देख सकते हैं।
जो चीज़ अपने बनाए जाने के उदेश्य से ही हट जाती है उनका अंजाम हमेशा ही बहुत भयानक निकलता है, यह भी एक कारण है जो शिर्क की सज़ा इनती सख्त है।
तो ये हैं वे तीन सही ऑप्शन और उपरोक्त कारण जो ईश्वर शिर्क की सज़ा देगा।
लेखन : मुशर्रफ़ अहमद