क्या कुरान के अनुसार सूरज दलदल मैं डूबता है ???

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”’ यहाँ तक कि जब वह सूर्यास्त-स्थल तक पहुँचा तो उसे मटमैले काले पानी के एक स्रोत में डूबते हुए पाया और उसके निकट उसे एक क़ौम मिली। हमने कहा, “ऐ ज़ुलक़रनैन! तुझे अधिकार है कि चाहे तकलीफ़ पहुँचाए और चाहे उनके साथ अच्छा व्यवहार करे।” (86) सूरह कह्फ”’

सब से पहले ध्यान देने यीज्ञ यह बात है कि कुरआन कोई विज्ञान की पुस्तक नहीं है। इसका उद्देश्य हमें वैज्ञानिक तथ्य सिखाना नहीं है। कुरआन का उद्देश्य मनुष्य के जीवन का मार्गदर्शन है। कुरआन जो भी बात करता है वह इसी उद्देश्य को सामने रखकर करता है, फिर उसमें कभी विज्ञान या इतिहास का वर्णन अनुपूरक तरीके से करता है। फिर जब पैगंबर हज़रत मुहम्मद (सल्ल।) से लोगों ने जुल करनैन के बारे में पूछा तो अल्लाह का जो संदेश आया उसी का वर्णन कुरआन में है। कुरआन ने जुल करनैन का किस्सा इस ढंग से पेश किया कि उस में से लोग उपदेश ले सकें।
जुल करनैन एक महान शासक की हैसियत से अपने लोगों के साथ जो चाहे कर सकता था। लेकिन वह एक न्यायी शासक था। उस ने किसी पर अत्याचार नहीं किया। उसने आम घोषणा की कि हम केवल उसके साथ कठोरता करेंगे जो बुराई करता हुआ पाया जाए। जो व्यक्ति शांति से रहें गे उन पर कोई अत्याचार नहीं होगा।
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कुरआन ने इस से यह शिक्षा दी कि एक शासक कैसा होना चाहिए और उसके न्याय के लिए जुल करनैन को सदा के लिए कुरआन में अमर कर दिया। सूरह कहफ की आयात 85, 90 और 93 मैं जुल करनेन की पश्चिम, पूरब और उत्तर के अभियानों का वर्णन किया। इसी संदर्भ में आयत 86 उसके पश्चिमी अभियान की अंतिम सीमा पर पहुँचने का वर्णन कलात्मक तरीके से करते हुए कहती है,
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यहाँ तक कि जब वह सूर्यास्त-स्थल तक पहुँचा तो उसे मटमैले काले पानी के एक स्रोत में डूबते हुए पाया और उसके निकट उसे एक क़ौम मिली। [18:86]
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न्याय दृष्टि से पढ़ने वाला व्यक्ति इसे विज्ञान के तराजू में क्यों तोलें जबकि यहाँ एक कलात्मक वर्णन है? कुरआन के अरबी मैं यहाँ शब्द’वजद’ का प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ कुरआन के शब्दकोश’मुफ़्रदात अल्क़ुरआन'(रचयता: इमाम रागिब इस्फ़हानी) में इस प्रकार है, अर्थात पांच इंद्रियों में किसी एक से किसी चीज़ का अनुभव करना।
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तो बात स्पष्ट है कि इस आयत में जुल करनेन का दृष्टि से बात व्यक्त की जा रही है कि वो जब अपने अभियान की पश्चिमी सीमा को पहुंचा और वह सूर्यास्त का समय था तो उस सूर्य का काले पानी मैं जाते हुए दर्शन किया। यह एक कलात्मक वर्णन है और जिस काले पानी की पात हो रही है उसे हम Black Sea (ब्लेक सी) के नाम से जानते हैं। यहाँ पर कोई विज्ञान विरुद्ध बात नहीं है। मुस्लिम विद्वानों ने कभी इस आयत का अर्थ यह नहीं लिया है कि सूर्य वास्तव में किसी काले पानी मैं डूबता है।
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हम रोज़ अपनी आँखों से समुद्र के किनारों पर यह देखते हैं कि मानो सूर्य समुद्र में जा रहा है या ऊपर आ रहा है।
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तभी तो हमारी भाषा में सूर्योदय और सूर्यास्त के शब्द बोले जाते हैं और वो भी आज कल के वैज्ञानिक युग में।
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जबकि हम सब अच्छी तरह जानते हैं कि सूर्य न अस्त होता है और न उदय। यह तो केवल धरती के अपने अक्ष (axis) पर घूमने से हमें लगता है कि जैसे सूर्य उदय एवं अस्त होता है। इसी कारण मनुष्यों ने भी कई ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जो इसी को दर्शाते हैं। Japan एक राष्ट्र है और इस नाम का शाब्दिक अर्थ होता है”Land of the Rising Sun” अर्थात”सूर्योदय की धरती”है। इसी प्रकार हमारे अपने देश इंडिया के एक प्रदेश का नाम”अरुणाचल”है, जिसका अर्थ होता है”उगते सूर्य का पर्वत”। तो क्या यह नाम गलत हैं या केवल एक कलात्मक विवरण है? जो लोग कुरआन के वर्णन मैं गलती तलाश रहे हैं वे वाग्मिता एवं खूबसूरत भाषा शैली से अपरिचित हैं।

लेखन : फ़ारूक़ खान

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