बारिश थी कि थमने का नाम नहीं ले रही थी . अनवर अपने टीन की छत वाले मकान में दुबका बैठा था. उसकी गोद में छह माह का बच्चा और बराबर में बुखार से तपती हुई उसकी बीवी सफिया .
” बारिश कब बंद होगी ?” सफिया ने कर्राह्ती हुई आवाज में पूछा .
” मुझे नहीं पता, पर बाहर जाकर देखता हूँ” .
यह कहकर अनवर बाहर निकला तो चारो तरफ अंधेरा था. नीचे घुटनों के बराबर पानी था और ऊपर आसमान बादलों से अटा पड़ा था. बूंदों की रिम झिम एक बार फिर मूसलाधार बारिश का रूप ले चुकी थी. चूंकि उसका मकान शहर के निचले इलाक़े में था, इसलिए इसकी ज्यादा संभावना थी कि घर में पानी भर जाएगा. मकान के अंदर अभी भी पानी टखने तक पहुंच चूका था. इस हाल को देखकर फ़िक्र मंद तरीके से वो खुद से बात करने लगा.
” अगर टीन की कमजोर छत ने बारिश का पानी रोकने में मदद नहीं की तो आज बचना मुश्किल है. आसपास कोई मदद करने को नहीं है क्योंकि सभी बस्ती वाले इस मुसीबत में गिरफ्तार हैं. लेकिन आधे किलोमीटर दूर एक चौधरी की कोठी है वहां शायद कुछ मदद मिल जाए. कुछ नहीं तो चौधरी अपने दालान की छत तले ही यह अमावस की रात बिताने दें।
यह सोचकर उसने बच्चे को सफिया के बराबर लिटाया और कमर कस के बाढ़ के पानी में उतरने की ठानी. ज्यूँ ही उसने पानी में कदम रखा तो पानी के एक रेले ने उसे मानो गिरा ही दिया था. बड़ी मुश्किल से वह खड़ा रह पाया और अपना संतुलन बनाया. पानी का बहाओ बहुत जोरदार था फिर भी वह पानी के बहाओ से लड़ता हुआ कोठी तक पहुंचने में कामयाब हो गया.
उसने हवेली के शानदार दरवाजे पर नज़र डाली और वहाँ के रहने वालों के आराम को हसरत की निगाह से देखा.
“दरवाज़ा खोलो ! ” .
उसने दरवाजा पीटा लेकिन अंदर से जवाब नदारद. कई बार कोशिश के बाद आंखें मलता हुआ एक कर्मचारी बाहर आया और उससे कड़े लहजे में संबोधित हुआ.
” कौन है, क्या चाहिए ? “
भाई मेरा बच्चा और बीवी घर में बीमार हैं अगर चौधरी साहब आज रात अपनी छत तले आसरा दे दें तो बड़ी महरबानी होगी “. अनवर ने नम्रता से कहा.
कर्मचारी ने अनवर के भीगे हुए बदन पर नजर डाली और उसे अन्दर ले गया. बड़ी मुश्किल से वे चौधरी को नींद से जगाने में सफल हो हुआ. चौधरी बहार आया और सख्ती से बोला.
” क्या हुआ भाई ? क्यों रात में परेशान करते फिर रहे हो ? “
अनवर ने उसे अपनी विपता सुनानी शुरू की. वे अपनी कहानी सुनाते हुए रो रहा था और चौधरी उसे बेपरवाही से देख रहा था. जब वह चुप हुआ तो चौधरी बोला.
“देख ! मुझे तेरी बोवी और बच्चे से कोई लेना देना नहीं. पर अगर तू खुद रुकना चाहे तो रुक जा “. चौधरी उसकी आँखों में देखकर उसके फैसले का अनुमान लगाने की कोशिश करने लगा.
अनवर इतना खुद गरज़ तो नहीं था, उसके मजहबी और तालीमी पसेमंज़र (पृष्ठभूमि) ने हमेशा उसे खुद गरजी से बचने की हिदायत की थी तो इस नाजुक मौके पर वे अपने बीवी और बच्चे को नहीं छोड़ सकता था. काफी देर मिन्नत समाजत के बाद चौधरी साहब ने नौकर को आदेश दिया कि उसे धक्के देकर बाहर निकाल दे.
अनवर फिर उसी मजधार में फंस गया जिससे निकलने के लिए वे घर से निकला था. ऊपर आसमानी तूफान था तो नीचे पानी का तेज बहाओ उसकी उम्मीदें डुबा रहा था. वह इस तरह की कंगाली की हालत में अपने रब से शिकायत करने लगा.
“ऐ अल्लाह यह कैसा इन्साफ है ? क्या तूने गरीबों को यूंही बारिश में बहने , भूख से तड़पने और बिमारियों में मरने के लिए बनाया है ? यह तेरा कैसा इन्साफ है कि अमीरों के तो कुत्ते भी बादाम पिस्ता खाएं और हमारे बच्चे भूख से मरें. अमीर पक्के मकानों में आराम से सोएँ और हम तिनके के घरौंदे समेटते फिरें. अमीरों के सफाई के पोचे भी हमारे कपड़े से बेहतर हैं. कैसा इन्साफ है यह ?. तू बोलता क्यों नहीं, क्या मैं तेरा बन्दा नहीं हूँ? क्या मेरा बच्चा तूने नहीं किसी और ने पैदा किया है ? क्या मेरी बीवी इंसान नहीं है ? फिर यह भेदभाव कैसा ? यह फर्क क्यों ? यह मुसीबतें क्यों हैं ? हम ने कौन सा गुनाह किया है ? “
अभी वह यह सब कुछ बोल ही रहा था कि अचानक पानी की एक जोरदार लहर आई और उसका संतुलन बिगड़ गया. वह तिनके की तरह पानी में गोते खाने लगा. उसे लगा कि उसका दम निकल रहा है और उसकी रूह निकल रही है. इसके बाद उसका दिमाग अंधेरे में डूबता चला गया और उसे कुछ होश न रहा.
जब आँख खुली तो आसपास का माहौल अजनबी लगा. आसपास पीले रंग की रोशनी फैली हुई थी. जब आँखें कुछ देखने के काबिल हुई तो पता चला कि यह एक झोपड़ी है. और वह चारपाई पर लेटा हुआ है.
“बेटा कैसी तबिअत है ?”
एक मुहब्बत से भरपूर आवाज़ उस के कानों से टकराई. उसने देखा तो सामने एक दाढ़ी वाले नूरानी चेहरे वाले बुजुर्ग खड़े थे. वह अभी इसी कश्मोकश में था कि जवाब दे या सवाल करे, कि बुजुर्ग ने फिर उसे संबोधित किया.
” घबराओ मत ! मैंने तुम्हें अपनी झोपड़ी के सामने बेहोश पाया तो यहाँ ले आया. माजरा क्या है? तुम कौन हो और इस सैलाबी रात में कहाँ घूम रहे थे ?”
अनवर ने उन बुजुर्ग को ध्यान से देखा तो उसे कोई ऐसी बात न मिली जिसकी बिना पर वे उनके बयान पर शक करता. इसलिए उसने पूरी कहानी उन्हें सुना दी. अपनी बिपता सुनाने के बाद वे उठते हुए बोला .
” अच्छा अब मैं चलता हूँ, मेरी बीवी और बच्चे बेचैन हो रहे होंगे “.
उसने उठने की कोशिश की, तो जोर का चक्कर आया और वह दोबारा चारपाई पर गिर गया.
” बेटा तुम्हारे सिर से खून काफी बह चुका है. इस तूफानी और सैलाबी रात में बाहर निकलना तुम्हारे लिए मुमकिन नहीं है. रात यहाँ बिता लो फिर सुबह जाने का सोचना. खुदा का शुक्र अदा करो कि उसने तुम्हें बचा लिया.”
बुजुर्ग ने मश्वरा दिया.
“खुदा का शुक्र ? खुदा का शुक्र क्यों अदा करूँ ? उसने ही तो मुझे इस हाल तक पहुंचाया. उसने हमें गरीब बनाया, और फिर बारिश और बाढ़ की आफत भी हम पर थोप दी. अगर यह अज़ाब है तो चौधरियों और अमीरों पर क्यों नहीं आता वह क्यों अपने मज़बूत घरों में आराम से सो रहे हैं ? क्या हम ही उसके अज़ाब का निशाना बनने के लिए रह गए हैं ?” .
अनवर ने गुस्से से कहा.
” न बेटा न ! खुदा को बुरा भला नहीं कहते?” बुजुर्ग ने उसे समझाया.
“क्यों नहीं कह सकते ? क्या हमारी मुसीबतें और परेशानियां हमें विरासत में नहीं मिली ? क्या यह गरीबी यह लाचारी खुदा की देन नहीं है? क्या इसका जिम्मेदार कोई और है ? “
अनवर एक सांस में सब कुछ कह गया .
बुजुर्ग ने उसे गुस्से में देखा तो टॉपिक बदलने के लिए कहा.
” बेटा! तुम बातों से तो पढ़े लिखे मालूम होते हो. तुम कौन हो और तुम्हारा बैकग्राउंड क्या है ? “
“मैं करीब के एक शहर का रहने वाला हूँ. मैंने फिलोसफी में मास्टर किया है. मेरी पढ़ाई तो शहर में ही हुई है लेकिन कुछ घरेलू मजबूरियों की वजह से इस कसबे में आना पड़ा.” अनवर ने कहा
“अब तुम क्या चाहते हो ! अगर अभी अपने घर वापस जाना चाहते हो तो यह मुमकिन नहीं बल्कि इससे तुम्हारी जान को खतरा है. रात यहाँ बिता लो ” . बुजुर्ग ने दुबारा सलाह दी.
अनवर ने सोचा कि इस सुझाव पर अमल करने के सिवा कोई चारा नहीं. इसलिए वह आँखें बंद करके लेट गया. बाहर बादल यूँही गरज रहे थे. लालटेन की डिम डिमाती हुई पीली रोशनी अंधेरे से लड़ने की कोशिश कर रही थी. बिजली की चमक से झोपड़ी कुछ पल के लिए रोशन हो जाती और फिर वही अँधेरा. इस माहौल में अनवर ने सोने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहा. कुछ देर बाद उसने आँखें खोली तो देखा कि बुजुर्ग नमाज़ पढ़ रहे थे. वह उन्हें देख रहा था और उसके मन में खुदा के बारे में वही पुराने सवाल घूम रहे थे. जब बुजुर्ग ने सलाम फेरकर उसकी ओर देखा तो अनवर से न रहा गया और उसने उनसे कहा.
” मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ. आप कौन हैं ? “
“मैं एक मज़हबी स्कॉलर हूँ, मेरा नाम माज़ अहमद है. मेरा घर तो शहर में है लेकिन यहाँ झोपड़ी में कुछ दिन सुकून के गुज़ारने आता हूँ ताकि अल्लाह की क़ुरबत (निकटता) हासिल करने की कोशिश कर सकूं”. बुजुर्ग ने कहा.
जब काफी देर तक कोई कुछ न बोला तो बुजुर्ग ने उसे फिर संबोधित किया.
” तुमने अपने रब से शिकवा किया था. अगर सही समझो तो मुझसे डिस्कस कर सकते हो.”
अनवर ने अच्छा मौका समझा और सवाल पूछा.
खुदा ने हमें क्यों बनाया ? “
” बेटा खुदा ने हमें इसलिए पैदा किया ताकि वह हमें आज़माएं कि हम में से कौन अच्छा है और कौन बुरा. अच्छों को वह अपने इनाम और इकराम से नवाज़े (सम्मानित करें) और बुरों के साथ सख्ती का मामला करे “. बुजुर्ग ने जवाब दिया.
” कुछ देर सोचने के बाद अनवर ने पूछा, लेकिन मुझसे तो इस आज़माइश से पहले नहीं पूछा गया तो उसने मुझे क्यों ज़बरदस्ती अपनी आज़माइश में डाल दिया ? क्या यह मुझ पर ज़ुल्म नहीं कि उसने मुझे इतने खतरनाक इम्तिहान में डाल दिया ?”
” नहीं बेटा! खुदा हर बुराई से पाक (दोष से मुक्त) है तो वे कैसे ज़ुल्म कर सकता है. तुम सोचो कि तुमने जितने भी इंटर और बी ए वगैरह के इम्तिहान अब तक दिए हैं उनको तुमने खुद चुना था, विषय चुने थे, रजिस्ट्रेशन करवाए, और अपनी मर्ज़ी से एग्ज़ाम रूम मैं खुशी खुशी दाखिल होकर पेपर में लिखे सारे प्रश्न हल किए. ऐसा ही हुआ था ना ?” बुजुर्ग ने पूछा.
” हाँ “. अनवर बोला.
” लेकिन तुम्हारा अधिकार इम्तिहान शुरू होने से पहले इम्तिहान चुनने की हद तक था लेकिन पर्चे में सवाल कौनसे आएंगे इस पर तुम्हारा कोई बस नहीं था “. बुजुर्ग ने अपनी बात जारी रखी.
” बेटा ! अगर कोई आदमी तुम्हें जबरदस्ती एग्ज़ाम रूम में धकेल दे और पेपर हल करने पर मजबूर करे तो वह आदमी ज़रूर कोई बदमाश या मूर्ख होगा. लेकिन खुदा हर ऐब से पाक है, वह कभी अपने बन्दों पर ज़ुल्म नहीं करता, इसलिए यह नामुमकिन है उसने तुम्हें या मुझे इस इम्तिहान में ज़बरदस्ती धक्का दिया हो और हमसे हमारा इरादा ना पूछा हो. कुरान में सूरए अहज़ाब की आयत नम्बर 72 में लिखा है कि-
” हकीक़त में हमने यह अमानत आसनाम और ज़मीन और पहाड़ों (वगैरह) के सामने पेश की तो उन्होंने उसे लेने से इनकार किया और वह डर गए, मगर इंसान ने उसे उठा लिया “
यह अमानत क्या थी ? यह हक़ीक़त में इसी आज़माइश और इम्तिहान की दावत थी. अल्लाह ने आसमान, जमीन (वगैरह) और इंसान को यह ऑफर की कि वह इस इम्तिहान में उतरना चाहते हैं या नहीं. आदमी के पास विकल्प था कि वह भी औरों की तरह मना कर देता लेकिन उसने इस चुनौती को अपनी मर्ज़ी से स्वीकार कर लिया”. बुजुर्ग ने अपनी बात पूरी की.
” लेकिन मुझे तो याद नहीं कि मैंने कोई ऐसा कुछ स्वीकार किया हो, मुझ से तो नहीं पूछा गया ” अनवर ने ऐतराज़ किया.
” बेटा ! याद न होना किसी घटना के न होने की दलील नहीं. मिसाल के तौर पर हम में से किसी को भी यह याद नहीं कि हम ने माँ के पेट में नौ महीने बिताए, या कैसे हमारा जन्म हुआ वगैरह. इसके बावजूद यह सब घटनाऐ एक हकीकत हैं ” बुजुर्ग ने ऐतराज़ को ख़तम करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने देखा कि अनवर की आंखों में अभी कुछ शक़ और ना यकीनी की लहरें थीं. कुछ देर के लिए खामोशी छाई रही. बादलों की गड़गड़ाहट खत्म हो चुकी थी और लगता था कि बारिश रुक गई है. रात का आखरी पहर शुरू हो चुका था लेकिन बादलों की वजह से अंधेरा इसी तरह मुंह खोलकर हर उजाले को निगलने की कोशिश में जुटा था. कुछ देर बाद अनवर फिर बोला.
” चलें अगर मुझसे पूछा गया था तो मुझे गरीबी और परेशानी का पेपर क्यों दिया गया ? क्या यह पेपर भी मेरा चुनाओ है ?”
बुजुर्ग ने यह सुनकर एक लम्बी आह ली और बोले.
” लगता है अब मुझे विस्तार से बताना होगा कि अल्लाह ने किस तरह इंसान को जन्म से पहले अपनी स्कीम से बाखबर किया और उसे इम्तिहान के बारे में पूरी जानकारी दी ताकि वह अपनी मर्ज़ी से चेलेंज को स्वीकार कर सके. यह सब समझने के लिए मेरी बात को ध्यान से सुनो”.
“यह काएनात एक गेंद की तरह थी. फिर एक बिग बैंग यानी बड़ा धमाका हुआ और गेंद फट कर अलग हिस्सों में बट गई (सूरेह अल अम्बिया). यही हिस्से अलग अलग सितारे और ग्रह बन गए. यह प्रथ्वी शुरू में एक आग के गोले के समान थी. धीरे धीरे शांत होने लगी और बहुत बारिशें हुईं जिससे उसका सारा हिस्सा पानी में डूबा मालूम होने लगा. फिर इसी हाल में ज़मीन सूखी और हरयाली पैदा हुई, फिर धीरे धीरे चरिंदे परिंदे, पेड़ पोधे और कीड़े मकोड़े वुजूद (अस्तित्व) में आए. इसके बाद खुदा ने इंसान को पैदा करने की योजना बनाई. इससे पहले फरिश्ते और जिन वह पैदा कर चुका था.
खुदा चाहता तो जबरदस्ती भी इंसान को इम्तिहान में धकेल देता और कोई उससे पूछने वाला ना होता, लेकिन उसने इंसान को इम्तिहान चुनने का अधिकार देने के लिए हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की पीठ से सभी इंसानों की रूहों को निकाला, हर रूह को देखने, सुनने, सोचने और बोलने की शक्ति दी. मानो यह एक शरीर के बिना इन्सान का वजूद (अस्तित्व) था, जो सोच भी सकता था और फैसला भी कर सकता था,
“सभी रूहों को आने वाले समय के इम्तिहान के बारे में खुदा ने अपने फरिश्तों के ज़र्ये बताया कि वह इंसान को जन्नत का वारिस बनाना चाहते हैं और कभी ना ख़तम होने वाली बादशाही का ताज पहनाना चाहते हैं. लेकिन इसके लिए एक इम्तिहान से गुजरना होगा”
बुजुर्ग ने अपना बयान जारी रखा. अनवर दिलचस्पी से उनकी बातें सुन रहा था क्योंकि इस बात में उसके अनगिनत सवालों के जवाब छिपे थे.
“इसके बाद इंसानों की रूहों को अगला मंज़र दिखाया गया जिसमें दुन्या की ज़िन्दगी का नक्शा था. यह मंज़र बहुत अहम् और फैसला कुन (निर्णायक) था क्योंकि इसी में उन रूहों को अपना कोई किरदार और वक़्त चुनना था. उन किरदारों में अमीर व गरीब, बीमार और स्वस्थ, खूबसूरत और बदसूरत, बुद्धिमान और कुंद दिमाग, मर्द और औरत शक्तिशाली और कमज़ोर और दूसरी बुन्यादों पर दुसरे किरदार थे. हर किरदार के अपने फायदे और नुकसान भी बताए गए. जैसे गरीबी लेने वालों को शारीरिक आजमाइशों का सामना करना पड़ेगा. वह भूख, प्यास, असुविधा और कच्चे मकानों में जीवन शुरू करेंगे, उन्हें बीमारी, आपदा और मौतों का ज्यादा सामना करना पड़ेगा. यानी वह सब्र (धैर्य) के इम्तिहान में होंगे. लेकिन इस किरदार का लाभ ये होगा कि उनकी इस मुश्किल हालात में की गई नेकी, सब्र और अच्छाइयों का इनाम कई गुना बढ़ कर मिलेगा. इसके अलावा वे अपनी उन मुसीबतों और परेशानियों के वजह से बहुत कम अपने रब को भुला पाएँगे” .
“यह तो आप बड़ी अजीब बातें बता रहे हैं मैंने तो यह बातें कभी किसी मौलवी से नहीं सुनी. ये बाते कुरान में किस जगह लिखी हैं ?”. अनवर ने पूछा.
बुजुर्ग उसकी ओर मुस्कुरा कर बोले.
“मुझे खुशी है कि तुमने इस की दलील मुझसे पूछी है. कुरान में सूरह आराफ आयत नंबर 172 और 173 में संक्षिप्त में उस ज़माने की इस घटना को बताया गया है.
“(आयत का अनुवाद) जब तुम्हारे रब ने आदम की पुश्त से उनकी पीढ़ियों को निकाला था और उन्हें खुद उनके ऊपर गवाह बनाया और उनसे पूछा था कि क्या मैं तुम्हारा रब नहीं हूँ ? उन्होंने कहा, हां हम इस बात के गवाह हैं. ‘यह हमने इसलिए किया कि’- न्याय के दिन कहीं तुम यह न कहने लगो कि हम इस बात से बेखबर थे या यह कहने लगो कि शिर्क तो हमारे बाप दादा पहले ही से करते आए थे और हम तो उनके बाद की पीढ़ी में हुए (और जैसा बड़ों को करते देखा हम भी वैसा ही करने लगे) तो (ऐ अल्लाह) क्या उन गलत रास्ते (निकालने) वालों की गलतियों पर तू हमें अजाब देगा ?”
अब अगर इस आयत को ध्यान से पढ़ो तो पता चलेगा कि अल्लाह ने जब इतनी सावधानी से आदम की पुश्त से रूहों को निकाला और ये सब इन्तिज़ाम किया तो सिर्फ अपनी तौहीद का इकरार करने के लिए नहीं किया था बल्कि अगले जीवन का नक्शा भी समझा दिया होगा जभी तो अल्लाह ने कहा कि न्याय के दिन तुम तौहीद के मुन्किर न हो जाना. कयामत का ज़िक्र जब रूहों के सामने किया गया है तो यह ज़रूरी था कि इम्तिहान का पूरा नक्शा पेश किया जाए वरना क़यामत का ज़िक्र रूहों के लिए समझना मुमकिन ना होता. इसी तरह रूहों को यह भी बताया गया कि अगर उन्होंने शिर्क किया और क़यामत में उसकी वजह ये पेश की कि उनके बाप भी ऐसे ही किया करते थे तो वजह कबूल नहीं की जाएगी. यह सारी जानकारी रूहों को तभी समझ में आ सकती थीं जब दुनिया में पेश आने वाले हालात की उनको जानकारी हो.
इसी तरह सूरह अहज़ाब में भी यही कहा गया है कि हम ने इंसान, जमीन और आसमान को यह (इरादा करने और चुनने की शक्ति की) अमानत दी लेकिन सिर्फ इंसान ने इसे क़ुबूल किया. बिल्कुल ऐसे ही सूरह बक़रः की ये आयतें भी इसी हक़ीकत को बयान करती हैं, “जब फरिश्तों ने देखा कि इन्सान को खुद इरादा करने और खुद चुनने की आज़ादी के साथ इस दुनिया में भेजा जा रहा है तो उन्होंने अपनी आशंका जताई कि अगर इंसान दुनिया में भेजा गया तो यह बहुत खून खराबा करेगा. अल्लाह ने कहा कि जो मैं जानता हूं वह तुम नहीं जानते. फिर अल्लाह ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को सभी इंसानों के नाम सिखाए जो दुनिया में नेक, सच्चे, शहीद और अपने रब के वफ़ादार व्यक्तित्व वाले बनने वाले थे. जब हज़रत आदम ने उन नामों को फरिश्तों से बताया तो फरिश्तों ने आपने कम इल्म की वजह से अपनी गलती को माना (सूरेह 2 आयत 30 से 33 का मफहूम)”.
यह सुनकर अनवर ने एक और सवाल किया.
” लेकिन इस आयत में तो संक्षेप में यह कहा गया है. इस बात की क्या दलील है कि हर इंसान को अलग अलग किरदार में से अपनी मर्ज़ी का किरदार चुनने का अधिकार दिया गया था ?”
“ये सही है कि यह कुरआन में इतने साफ़ अल्फाज़ में सारी बात नहीं लिखी हुई. क्यूँ कि कुरआन का अंदाज़ येही है कि जब दो बातें बता कर कोई तीसरी बात बिना बताए भी समझ सकता है तो कुरआन उस तीसरी बात को सिर्फ इशारों में ही बयान करता है, लेकिन इस बारे में कई हदीसें भी मौजूद हैं मगर चूंकि वह सनद के आधार पर कमज़ोर हैं इसलिए मैं उन्हें दलील के रूप में पेश नहीं करता. लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि यह सब कुछ कोमनसेन्स बता देता है कि जब दुनिया में एक आदमी को अधिकार है कि वह जिस लाइन में जाना चाहे उसी लाइन की परीक्षा चुन सकता है तो अल्लाह ने भी तो ये विकल्प इंसान को दिया होगा कि वह अपनी समझ के अनुसार कोई भी किरदार चुन ले. लेकिन यह मेरी निजी राय है. तुम इससे असहमत हो सकते हो. लेकिन यह तो कुरआन से साबित है कि इम्तिहान का पूरा नक्शा इंसान को दिखाया गया और साथ ही उसे चुनने और रद कर देने का अधिकार दिया गया था.” बुजुर्ग ने विस्तार से बताया.
“अगर मैं एक तंदुरुस्त और अमीर इंसान का किरदार चुनता तो क्या यह मुमकिन था ? और इससे मुझे क्या फायदे और नुकसान हो सकते थे ?” अनवर ने सवाल किया.
“यह देखने में तो एक आसान और अच्छे इम्तिहान का चुनाओ होता लेकिन इसमें कई मुसीबतें थीं. पहली मुसीबत तो यह कि इसमें शारीरिक महनत के बजाय मानसिक महनत का सामना करना पड़ता. इस इम्तिहान में अवसाद, घमण्ड, और खुदा को भूल जाने और क़यामत से बेपरवाह होने की संभावना ज्यादा थी, इन सभी मुश्किलों के बावजूद इस में शुक्र के इम्तिहान में सफलता की संभावना तो मोजूद थी लेकिन काफी मुश्किलों के बाद होती”. बुजुर्ग ने नसीहत करने के अन्दाज़ में कहा.
“इसका मतलब है कि मैंने अपनी मर्जी से एक गरीब का किरदार निभाने को मंज़ूर किया”. अनवर जैसे अपने आप से बोला.
”लेकिन अगर मैंने गरीबी में पैदा होने हो चुना है तो क्या मैं हमेशा गरीब ही रहूँगा ?” अनवर ने अपनी उलझन को दूर करने की कोशिश की.
“नहीं ऐसा नहीं है. इस पेपर में कुछ मामलों में अल्लाह ने अपनी हिकमत (रणनीति) के तहत तय कर रखे हैं जबकि कुछ मामले इन्सान के इख़्तियार में हैं, एक गरीब आदमी चाहे तो अपनी मेहनत और सही फैसले लेते रहने के बलबूते पर अमीर हो सकता है इससे उसके इम्तिहान में कोई फर्क नहीं पड़ता, क्यों कि फिर उसका इम्तिहान दूसरा रूप ले लेता है”. बुजुर्ग ने समझाया.
”अगर किसी की रूह ने खुद इस इम्तिहान में उतरने से मना कर दिया तो उसका क्या हुआ ? ” अनवर ने पूछा.
“इस इन्कार का मतलब है इम्तिहान से पीछे हट जाना. चूंकि इन सभी रूहों को दुनिया में उतारने का फैसला अल्लाह ने कर ही लिया था तो ऐसी रूहों को उन शरीरों में भेजा जाता है जिनकी मौत किसी वजह से बचपन में होने वाली थी. चूँकि उन रूहों ने इम्तिहान में उतरने से इनकार कर दिया था तो उन्हें जन्नत में एक बे शऊर (बिना चेतना) के नौकर के रूप में दाखिल कर दिया जाएगा जैसे एक रोबोट होता है. यहां उनका काम सिर्फ जन्नत वालों के काम करना होगा, लेकिन यह कुछ हदीसों की बुन्याद पर मेरी निजी राय है तुम्हे इससे मतभेद हो सकता है” .
यह जवाब देने के बाद बुजुर्ग ने अपनी बात जारी रखी.
” जब इन्सान को पूरी स्कीम समझा दी गई, तो उनसे वादा लिया गया, ये घटना हदीसों की किताबों में ‘अहदे लस्त’ के नाम से मशहूर है. इसमें अल्लाह की वहदानियत (एक) पर बने रहने और अपने एक मात्र खुदा की इबादत और इताअत (आज्ञाकारिता) का वादा लिया गया और सब रूहों ने इसको कबूल किया.
इसके बाद रूहों को एक खास जगह महफूज़ कर दिया गया जहां से उन्हें उनके समय पर दुनिया में भेजा जाता है”. अनवर कुछ कहना चाहता था लेकिन बुजुर्ग ने उसे हाथ के इशारे से रोक कर कहा .
” अब ज़रा इस लंबी बहस का खुलासा सुन लो उसके बाद कोई सवाल हो तो करना.
- हर इंसान को उसकी अपनी मर्जी से इस दुनिया में एक वक़्त के लिए भेजा गया है.
- खुदा आदमी को नजर नहीं आता ताकि पूरा इम्तिहान हो सके, लेकिन खुद इंसान का होना और ज़मीनों आसमान में फैली उसकी निशानयाँ (संकेत) उसके मौजूद होने की दलील हैं. इन्सान को इन्ही निशानयों की नज़र से खुदा को देखना होगा और उसपर यकीन करना होगा साथ ही उसके तमाम हुक्मो को मानना होगा जो आपके के इल्म (ज्ञान) में हों.
- इस इम्तिहान के वक़्त में ‘अहदे लस्त’ की सभा इंसान को भुला दी गया है, लेकिन उसकी फितरत में उसका अहसास जिंदा है. इंसान फितरत से जानता है कि उसका एक रब है और वो इन्साफ पसंद है वगैरह.
- अल्लाह की मर्ज़ी बताने के लिए हर इन्सान की फिरत में अच्छाई और बुराई की समझ को रख दिया गया है जो हर पल उसे बताता है कि वह सही रास्ते पर है या नहीं. उसी का असर है कि एक नोर्मल इंसान को बुराई करते वक़्त अन्दर से कुछ ना कुछ बुरा महसूस होता है.
- इस के साथ साथ खुदा के पैगंबर व्ही के ज़रये से सीधे रास्ते की पहचान करते और बताते रहें हैं.
- अब जिसने अल्लाह के हुक्मों को मानने का रास्ता चुना तो वो कामयाब और जिसने अपनी जिद और बुराई का रास्ता चुना वो नाकाम होगा.
- कामयाबी का अंजाम जन्नत होगी और नाकामी का अंजाम जहन्नम की ज़िन्दगी.
अनवर के पास अब ज्यादा कुछ पूछने के लिए नहीं था. इस सारी बातचीत के दौरान वह भूल गया था कि उसकी बीवी और बच्चा उसका इंतजार कर रहे हैं . बारिश बंद हो गई थी, सुबह की आज़ान हो रही थीं. वह उठा तो उसे पता चला कि अब शारीर में काफी ऊर्जा आ चुकी है. उसने उठकर बुजुर्ग के साथ सुबह की नमाज़ अदा की और उनका शुक्रिया करते हुए वापसी की इज़ाज़त मांगी.
वह बाहर निकला तो ताजा हवा के झोके ने उसका स्वागत किया. मौसम साफ हो चुका था, रौशनी फैलने लगी थी और पानी भी उतर चुका था. उसने आसमान की ओर देखा और मुस्कुरा कर अपने चयन को सही साबित करने का संकल्प किया. वह खुद से बोलते हुए कहने लगा.
“बस ये कुछ इम्तिहान के पल अच्छी तरह निभाने हैं. इसके बाद अल्लाह की क़ुरबत (निकटता), फरिश्तों का स्वागत और कभी ना खत्म होने वाली शानदार जन्नत की ज़िन्दगी”.
(प्रोफ़ेसर मु. अकील के एक लेख का हिन्दी अनुवाद कुछ बदलाव के साथ लेखन : मुशर्रफ़ अहमद