ऐसे हालत में इस्लाम ने मुसलमानों पर जो फर्ज़ किया है वो है मज़लूम का साथ देना और ज़ालिम के खिलाफ लड़ना चाहे वो कोई भी हो, इस्लाम में लड़ने का म्यार हिन्दू मुस्लिम नहीं बल्कि ज़ालिम और मज़लूम है, हर हाल में ज़ालिम के खिलाफ लड़ा जाएगा और मज़लूम की मदद की जाएगी चाहे वो मज़लूम गैर मुस्लिम ही हों तो भी मुसलमानों के खिलाफ भी लड़ा जाएगा.एक मिनट के लिए मानलें- अल्लाह ना करे अभी पाकिस्तान भारत पर बिना वजह के ज़ालिमाना हमला कर देता है तो वो ज़ालिम है और उसके खिलाफ लड़ना जैसे भारत के मुसलमानों का फ़र्ज़ है ऐसे ही पाकिस्तानी मुसलमानों का भी फ़र्ज़ है कि वो अपने ही देश के खिलाफ खड़े हों जाएँ, अगर पाकिस्तानी मुसलमानों ने इन्साफ को छोड़ कर अपने देश की मुहब्बत में पाकिस्तान का साथ दिया तो यह इस्लाम के खिलाफ होगा, क्यों कि कुरआन में साफ़ साफ़ अल्लाह ने मुसलमानों को हर हाल में इन्साफ पर कायम रहने का हुक्म दिया है चाहे उसमें अपना अपने माँ बाप का और अपने रिश्तेदारों का ही नुक्सान होता हो (सूरेह निसा आयत 135)लेकिन अगर कहीं किसी जंग में हालात ऐसे हैं कि ना कोई मजलूम नज़र आ रहा है और ना कोई ज़ालिम ही दीखता है तो ऐसे हालात में मुसलमान को अपनी सारी कोशिश जंग को रोकने में लगा देनी चाहिए, क्यों कि सुलह करा देना जंग से कहीं बहतर है.
(मुशर्रफ़ अहमद)