यह एक विरोधाभासी विषय है जिसपर उलमा में इक़्तिलाफ(different of Opinion) है…कुछ की नज़र में जायज़(permissible) व कुछ की नज़र में ना-जायज़(prohibited)…
…अक्सर इस्लाम में परिवार नियोजन के विरोध में यह आयत पेश की जाती है
…”” और निर्धनता के भय से अपनी सन्तान की हत्या न करो, हम उन्हें भी रोज़ी देंगे और तुम्हें भी। वास्तव में उनकी हत्या बहुत ही बड़ा अपराध है (31) सूरह इसरा””
जिसकी तार्किक व ऐतिहासिक द्रष्टी से विवेचना करनें पर परिवार नियोजन से कोई संबंध नज़र नहीं आता….
क्योंकि यह आयत हत्या की बात करती है और हत्या उस ही कि तार्किक है जो वजूद में हो(जिसका भौतिक शरीर हो)…(परिवार नियोजन में ऐसा कुछ होती ही नहीं)..विधित है संसार के सारे धर्म जीवित मानव की हत्या को पाप मानते है….दूसरी तरफ कुछ उलमा का मत है कि यह आयत उस ज़माने में लड़किये के जिन्दा दफन(buri) किये जानें की मुख़ातफत में नाज़िल हुई..क्योंकि लोग लोगों में यह कुरीति आम हो च़ुकी थी व लोग लड़कियों को ज़िन्दा दफन कर देते थे इस ही कुरीती के विरोध में यह आयत नाज़िल हुई जिसमें आदेश दिया गया कि ग़रीबी की वजह से अपनी औलाद का क़त्ल मत करो क्योंकि रोज़ी देनें वाला अल्लाह है….
हमें यह बात भी घ्यान रखनी चाहिये कि क़ुरआन के अवतरण काल में परिवार नियोजन जैसी कोई चीज़ नहीं थी और ना ही बर्थ कंट्रोल जैसी कोई चीज़ अपने अस्थित्व में थी(जैसी आज के परिवेश में मानव की ज़रूरतें हैं…आहार/ बेहतर शिक्षा/स्वास्थ/वित्तीय सीमायें/) इसीलिये क़ुरआन इस मामले में ख़ामोश है….
लिहाज़ा परिवार नियोजन पूरी तरह पति पत्नी के बीच का मामला है कि वह किस तरह अपनें परिवार के जीवन यापन/शिक्षा/बेहतर भविष्य के लिये क्या फैसला लें….इस्लाम इस पर कोई पाबंदी नहीं लगाता..
लेखन : फ़ारूक़ खान