प्रश्न: क्या ज़रूरत थी नबी सल्ल को अपने मुह बोले बेटे हज़रत ra की बीवी से शादी करने की ..??

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इस्लाम हक़ ही को मामता है emotional outburst /भावुकता से चीज़ों का आंकलन नहीं करता…यानि तार्किक/वास्तविक/प्रैक्टिकल बात करता है..किसी के मान लेंनें से रिश्ता नहीं बन जाता…क्योंकि ऐसे रिश्ते भावुकता से ज़्यादा कुछ नहीं होते..मां जैसा बहन जैसा भाभी जैसा इस्लाम में कनेसैप्ट नहीं…..
हज़रत ज़ैद के साथ हः ज़ैनब र का निकाह सन् 4 हिजरी में हुआ मगर निबाह ना हो सका., अगले साल दोंनों में अलेहिदगी/अलगाव हो गया …हः ज़ैद र नें जब अल्लाह के रसूल सल्ल० से तलाक़ का इरादा ज़ाहिर किया तो आपनें सबब पूछा उन्होंनें कहा कि वह अपने ख़ानदानी यश/शरफ़ की वजह से मेरे मुक़ाबले में बड़ाई का एहसास रखतीं हैं..तब आपनें(नबी सल्ल०)उन्हें रोका बार बार की दरख़्वास्त पर आख़िरकार आपनें उन्हें अलेहिदगी/अलगाव की इजाज़त दे दी…
हः ज़ैद र और ज़ैनब र के निकाह से अव्वल यह रस्म तोड़ी गई थी कि माआशिरती/सामाजिक फ़र्क़ को निकाह में हायल/प्रभावी नहीं होना चाहिये मगर जब उनके दर्मियान/बीच मैं अलाहिदगी हो गई तो अब अल्लाह की मर्ज़ी यह हुई कि ज़ैनब र को एक और ग़लत रस्म के तोड़नें का ज़रिया बनाया जाये..
क़दीम/पुराने जाहिलियत में यह रिवाज़ था कि मुतबन्ना(मुंह बोले बेटे) को बिल्कुल हक़ीकी/सगा बेटे की तरह समझते थे..हर एतबार से उसके वही हुक़ूक़/अधिकार थे जो हक़ीक़ी बेटे के होते हैं.इस रस्म को तोड़नें की बेहतरीन सूरत यह थी कि तलाक़ के बाद हःज़ैनब र का निकाह अल्लाह के रसूल सल्ल० के साथ कर दिया जाये….
हःज़ैद र रसूल सल्ल० के मुंह बोले बेटे थे.यहां तक कि उन्हें ज़ैद बिन मुहम्मद कहा जानें लगा था….ऐसी हालत में मुंह बोले बेटे की तलाक़ शुदा औरत से आपका निकाह करना उस रस्म के ख़िलाफ एक धमाके की हैसियत रखता था..क्योंकि उनका ख़याल था कि मुतबन्ना(मुह बोला बेटा ),की निकाह में आई औरत बाप पर हराम है जिस तरह हक़ीक़ी(सगे) बेटे के निकाह में आई औरत बाप पर हराम होती है….
अल्लाह के रसूल सल्ल० को पेशगी/एडवांस्ड तौर पर बताया जा चुका था कि अगर
दोंनों में अलाहिदगी हुई तो इस जाहिल रस्म को तोड़नें की तदबीर/मिसाल के तौर पर ज़ैनब र को आपके निकाह में दे दिया जायेगा…चूंकि इस क़िस्म का निकाह क़दीम पुराने माहौल में ज़बरदस्त बदनामी का ज़रिया होता …इसलिये अल्लाह के रसूल सल्ल० हः ज़ैद को रोकते रहे कि वह तलाक़ ना दें तो में इस शदीद/एक्सट्रीम आज़माइश/परीक्षा से बच जाऊंगा़ मगर जो चीज़ इल्में इलाही में मुक़द्दर/नियति थी वह होकर रही हःज़ैद ने हःज़ैनब र को तलाक़ दे दी और उस रस्म के तोड़नें की अमली तदबीर के तौर पर सन् 5 हि० में ज़ैनब र का निकाह आप सल्ल० से कर दिया गया….

लेखन : फ़ारूक़ खान

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