जी नहीं, हमें ऐसे ही किसी को भी काफ़िर कहने का हक नहीं है हम सिर्फ उसको कह सकते हैं जिसे कुरआन या अल्लाह के रसूल सल्ल० ने काफ़िर कहा हो. इसकी वजह ये है कि हम किसी के दिल का हाल नहीं जानते लेकिन अल्लाह ही जानता है.
आसान और कम शब्दों में कहूँ तो काफ़िर कुरआन सिर्फ उन लोगों को कहता है जिनके सामने अल्लाह ने अपने रसूलों के ज़रिये से धर्म की सही बात पेश की और उन्होंने उसे समझने के बाद भी अपने किसी लालच, पूर्वाग्रह, घमण्ड या पक्षपात के कारण मानने से इनकार कर दिया, तो कुरआन की भाषा में वो काफ़िर है और उसका जुर्म ये है कि उसने ईश्वर की एक सच्ची बात को जान बूझ कर ठुकरा दिया है. तो ये दिल का मामला है और हम किसी के दिल को नहीं जानते.
अगर कोई मुसलमान नहीं है तो आप उसे ब हेसियते कौम गैरमुस्लिम कहें.
कुरआन ने भी सब गैरमुस्लिमों को काफ़िर नहीं कहा है बल्कि सूरेह यासीन आयत 6 में उन्हें ”गाफिलून” ज़रूर कहा गया है. इसका मतलब ये है ”जिन्हें पता नहीं”.
कुरआन में यहाँ ये कहा गया है कि जिन्हें हमारे दीन (धर्म) का कुछ पता नहीं है क्यों कि उनके या उनके बाप और दादा के ज़माने में कोई रसूल उनके पास खबरदार करने नहीं आया था इसलिए वो अनजान हैं. अब हमारा काम कुरआन के ज़रिये उन तक सही बात पहुंचा देना है.
लेखन : मुशर्रफ़ अहमद