जो अल्लाह को ना माने वो काफिर है,,??

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नहीं हम यह नहीं कहते कि जो अल्लाह को ना माने वो काफिर है, बल्कि हम ये कहते है कि जो जानते बूझते अल्लाह को ना माने वो काफ़िर है.
देखिये भाई काफ़िर शब्द का अर्थ तो इन्कार करने वाला ही होता है चाहे किसी भी चीज़ का इन्कार करना हो, लेकिन इस शब्द का इस्तिमाल अल्लाह का इन्कार करने के अर्थ में इतना ज्यादा हुआ कि अब यह सिर्फ इसी अर्थ के लिए आम बोला जाने लगा है,
आसान भाषा में कहूँ तो ‘जान बूझ कर अल्लाह या अल्लाह की किसी बात का इन्कार करने वाला कुरआन की भाषा में काफ़िर है’.
लेकिन किसी एक इन्सान को काफ़िर कहना जाएज़ नहीं क्यों कि हम किसी के दिल की बात नहीं जानते कि वो इन्कार किसी ग़लतफ़हमी में कर रहा है या जान बूझ कर, अल्लाह ही दिलों की बात जानता है इसलिए वो ही किसी को काफ़िर कह सकता है हम नहीं.
काफ़िर शब्द के बारे में और विस्तार से आक़िब खान लिखते है कि-
………………………………
क्या काफिर शब्द कोई मजहबी गाली है ?
क्या काफिर शब्द हिंदुओं के लिए प्रयोग किया जाता है ?
क्या काफिर अपमानजनक शब्द है ?
तीनों प्रश्नो का उत्तर है “नहीं” ।
विस्तृत विवेचन :
ये और ऐसे बहुत से प्रश्न है जिसका उत्तर हमारे हिन्दू भाई जानना चाहते है। इस शब्द को लेकर समाज में बहुत सी गलतफहमियाँ फैली हुई है। पहले तो आपको ये बताना चाहता हूँ की इस शब्द को लेकर गलतफहमी सिर्फ हिंदुओं में नहीं बल्कि अनेक मुसलमान भी इस शब्द का सही अर्थ नहीं जानते और अज्ञान के कारण इस शब्द का गलत इस्तेमाल करते है।
बहुत से गैरमुस्लिम ये समझते है की काफिर शब्द क़ुर-आन मजीद में हिंदुओं के लिए अपमानजनक और गाली समान प्रयुक्त हुआ है।
काफिर का वास्तविक अर्थ बताने से पहले मैं आपको एक तर्क पे आधारित बात से परिचित करना उचित समझता हूँ। आप जानते ही होंगे कि क़ुर-आन ईश्वर (अल्लाह ) का संदेश है जो कि सबसे पहली बार अरब के वासियों ने सुना। और वहाँ कोई भी भारतीय नागरिक (हिन्दू ) नहीं रहता था जो उसे काफिर कहकर पुकारा जाए। इससे ये मालूम हुआ की ये एक बहुत ही बेबुनियाद बात है की काफिर हिंदुओ के लिए उन्हे अपमानित करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
सत्य तो ये है की काफिर शब्द अरबी भाषा का एक साधारण शब्द है जो हज़रत मुहम्मद (सल०) के जन्म से पहले यानि कुरआन से पहले भी अरबी भाषा में प्रयोग किया जाता था। और इसका अर्थ अपमानजनक तो कहीं से नहीं है। जो लोग अरबी भाषा जानते है वो इस बात को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। अब मैं आपके सामने प्रमाणो और क़ुर-आन मजीद की आयतों से ये सिद्ध करूंगा कि आम तौर पर काफिर शब्द के अर्थ में कुछ भी अपमानजनक नहीं है।
अरबी शब्दकोश में काफिर शब्द (क़+फ+र) के संयोग से बनता है। अरबी शब्दकोश मे इसके तीन अर्थ मिलते है :
1 छिपाना , ढक लेना
2 अस्वीकार करना, न मानना
3 नाशुक्री करना, अक्रतज्ञता दिखाना
क़ुर-आन मजीद में काफिर शब्द इन तीनों अर्थो में विभिन्न जगह पर इस्तेमाल हुआ है।
1>>>>>पहले अर्थ में क़ुर-आन मजीद में प्रयोग के उदाहरण।
Surah Hadeed 57, Aayat Number 20
اعْلَمُوا أَنَّمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا لَعِبٌ وَلَهْوٌ وَزِينَةٌ وَتَفَاخُرٌ بَيْنَكُمْ وَتَكَاثُرٌ فِي الْأَمْوَالِ وَالْأَوْلَادِ ۖ كَمَثَلِ غَيْثٍ أَعْجَبَ الْكُفَّارَ نَبَاتُهُ ثُمَّ يَهِيجُ فَتَرَاهُ مُصْفَرًّا ثُمَّ يَكُونُ حُطَامًا ۖ ِ
IAAlamoo annama alhayatuaddunya laAAibun walahwun wazeenatun watafakhurunbaynakum watakathurun fee al-amwali wal-awladikamathali ghaythin aAAjaba “”alkuffara”” nabatuhuthumma….
अनुवाद :
दुनियावी जीवन की मिसाल तो बारिश की सी मिसाल है जिस की वजह से “किसानो” की खेती लहलहाती और उनको खुश कर देती है …
यहाँ शब्द “कुफ़-फार ” आया है। यह बहुवचन है। एक वचन में यह शब्द “काफिर” होगा। इस आयात में काफिर शब्द किसान के लिए आया है। क्योंकि किसान धरती में बीज डालता है और फिर उस बीज को मिट्टी से छिपाता है या ढक देता है। इसलिए अरबी भाषा में किसान के लिए काफिर शब्द का प्रयोग होता है। और इस शब्द का इस्तेमाल क़ुर-आन मजीद के अवतरित होने से पहले भी किया जाता था।
इसका पहला अर्थ समझने के बाद क्या आपको इसमे कोई अपमानजनक बात या कोई गाली दिखाई पड़ी ?
अब आइये इसके दूसरे अर्थ की तरफ
2>>>>>दूसरे अर्थ में क़ुर-आन मजीद में प्रयोग का उदाहरण।
Surah Baqrah Aayat 256
لَا إِكْرَاهَ فِي الدِّينِ ۖ قَدْ تَبَيَّنَ الرُّشْدُ مِنَ الْغَيِّ ۚ فَمَنْ يَكْفُرْ بِالطَّاغُوتِ وَيُؤْمِنْ بِاللَّهِ فَقَدِ اسْتَمْسَكَ بِالْعُرْوَةِ الْوُثْقَىٰ لَا انْفِصَامَ لَهَا ۗ وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
La ikraha fee addeeniqad tabayyana arrushdu mina alghayyi faman “”yakfur”” bittaghootiwayu/min billahi faqadi istamsaka bilAAurwatialwuthqa la infisama laha wallahusameeAAun AAaleem
अनुवाद :
धर्म के विषय में कोई ज़बरदस्ती नहीं, सही बात नासमझी की बात से अलग होकर स्पष्ट हो गयी है तो अब जो कोई ताग़ूत (शैतान) को ठुकरा दे और अल्लाह पर ईमान लाए उसने ऐसा मज़बूत सहारा थाम लिया जो कभी टूटनेवाला नहीं. अल्लाह सब कुछ सुनने जानने वाले है .
ये एक बहुत ही प्रसिद्ध आयात है। इस आयात में एक बहुत ही अच्छी शिक्षा दी गयी है। वो शिक्षा ये है की धर्म में कोई जबरदस्ती नहीं। अर्थात किसी भी इंसान का ज़बर्दस्ती धर्म परिवर्तन नहीं करना चाहिए। जो ऐसा कार्य करेगा वो इस्लाम विरुद्ध और क़ुर-आन विरुद्ध कार्य होगा। और ऐसे कार्यो का इस्लाम धर्म से कोई लेना देना नहीं है।
इस आयात में शब्द “यकफुर” आया है और इस संदर्भ में इसका अर्थ “ठुकराना” या “इंकार करना” है। और आश्चर्य की बात है की इस आयात में ये शब्द मुसलमानो के लिए प्रयोग हुआ है। आयात में ये बताया जा रहा है की सच-चा मुसलमान शैतान (राक्षस) की बात का इंकार करने वाला है अर्थात एक सच्चा मुसलमान शैतान का काफिर (इंकार करने वाला,ठुकराने वाला ) है।
यहाँ मुसलमान को शैतान को ठुकराने वाला (काफिर) कहा गया है। यहाँ भी ये शब्द कोई अपमानजनक शब्द नहीं है।

3>>>>>आए इसका तीसरा अर्थ भी देखते है
तीसरे अर्थ में क़ुर-आन मजीद में प्रयोग का उदाहरण।
Surah Luqman 31, Aayat 12:
وَلَقَدْ آتَيْنَا لُقْمَانَ الْحِكْمَةَ أَنِ اشْكُرْ لِلَّهِ ۚ وَمَنْ يَشْكُرْ فَإِنَّمَا يَشْكُرُ لِنَفْسِهِ ۖ وَمَنْ كَفَرَ فَإِنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ حَمِيدٌ
Walaqad atayna luqmanaalhikmata ani oshkur lillahi waman yashkur fa-innamayashkuru linafsihi waman “”kafara”” fa-inna Allaha ghaniyyun hameed
अनुवाद : अल्लाह के प्रति कृतज्ञता दिखलाओ और जो कोई कृतज्ञता दिखलाये वह अपने ही भले के लिए कर्तज्ञता दिखलाता है. और जिसने अकृतग्यता दिखलाई तो अल्लाह वास्तव में निस्पृह प्रशंसनीय है .
इस आयात में (का-फा-रा) प्रयोग हुआ है और इसका अर्थ जैसे पहले बताया जा चुका है “आक्रतज्ञता” होता है.
इन तीनों अर्थ में कोई भी अर्थ अपमानजनक नहीं है। बल्कि यह एक साधारण शब्द है।
अब में आपको इस्लाम धर्म के अनुसार इसका पारिभाषिक अर्थ बताता हूँ।
इस्लाम के दृष्टिकोण से इसका पारिभाषिक अर्थ है :
“इस्लाम की सच्चाई समझ लेने के बाद उस पर विश्वास करने के बजाए, इस्लाम का इंकार कर देना, इस्लाम को ठुकरा देना, मन मस्तिष्क पर सत्य स्पष्ट हो जाने के बाद भी उसे छिपा लेना, ढाक देना और उसका ऐसा करने से ईश्वर के प्रति आक्रतज्ञता प्रकट करने वाले को इस्लाम की भाषा में काफिर कहते है”
इस्लाम के दृष्टिकोण से जानते बूझते इस्लाम का इंकार करने वाला काफिर होता है।
यहाँ एक प्रश्न उठता है कि क्या हर गैर मुस्लिम काफिर है ?
नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है, हर गैर मुस्लिम काफिर नहीं है। जिस गैर मुस्लिम तक इस्लाम की दावत (ईश्वर का संदेश) नहीं पहुंचा या अगर पहुंचा भी तो किसी ऐसे व्यक्ति के द्वारा पहुंचा जिसने भ्रामक या गलत जानकारी दी हो तो स्वाभाविक बात है वो इस्लाम के सत्य को स्वीकार नहीं करेगा। काफिर शब्द केवल उसी के लिए प्रयोग होगा जो इस्लाम को अच्छी तरह समझ ले और समझने के बाद उसका इंकार कर दे।

अंतिम निर्णय
उपरोक्त विवरण से ये बात पूर्णतः स्पष्ट हो गई कि क़ुर-आन मजीद में काफिर शब्द गैर मुस्लिमो (विशेषकर हिंदुओं) को अपमानित करने के लिए प्रयुक्त नहीं हुआ। काफिर शब्द एक गुणवाचक संज्ञा है। इस शब्द का किसी विशेष जाती, नस्ल, कौम,क्षेत्रवासी, समूह या रंग व वर्ग से कुछ भी संबंध नहीं है। ये कोई अपमानजनक शब्द या मजहबी गाली नहीं है।
तुलनात्मक दृष्टिकोण से भारतीय धर्म ग्रंथ से उदाहरण
हिन्दू धर्म में भी “काफिर” के प्रकार का एक शब्द का प्रयोग होता है। वह शब्द है “नास्तिक”। आम इंसान भी इसका शाब्दिक अर्थ जानता है कि इसका शाब्दिक अर्थ है “आविश्वासी” यानि जिसे विश्वास नहीं।
परंतु धार्मिक दृष्टिकोड से नास्तिक का अर्थ भिन्न है। नास्तिक किसे किसे कहते हैं इसे भारतीय धर्म ग्रंथो और संस्कृत साहित्य में स्पष्ट किया गया है।
महर्षि दयानन्द सरस्वती जी भी अपने ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में नास्तिक की परिभाषा समझाते हैं, और लिखते हैं:
जो जो ग्रंथ वेद से विरूद्ध हैं उन उन का प्रमाण करना जानो नास्तिक होना है. सुनो –
मनु जी कहते है की जो वेदो की निंदा अर्थार्थ अपमान, त्याग, विरूद्ध आचरण करता है वह नास्तिक कहलाता है । (Adh.12 -1) —Satyarth Prakash.
उपयुक्त परिभाषा से पता चला कि जो भी वेदो का त्याग करेगा या उसके विरूद्ध आचरण करेगा वो नास्तिक कहलाएगा। स्वामी दयानन्द सरस्वती के अनुसार मुसलमान,बोद्ध,ईसाई,जैनी इत्यादि ये सभी मत वेदो को भी प्रमाण स्वीकार नहीं करते एवं बहुत से ऐसे कार्य करते है जो वेदो के विरूद्ध है, इसलिए धार्मिक दृष्टि से मुस्लिम,ईसाई,बोद्ध,जैनी सब नास्तिक है।
लेकिन क्या इसका अर्थ ये है की “नास्तिक” कोई मजहबी गाली हो गयी? बिल्कुल नहीं !! और न ही नास्तिक शब्द कोई अपमानजनक शब्द है।
कोई भी हिन्दू विद्वान आपको यही बताएगा की “नास्तिक” कोई बुरा शब्द नहीं है, लेकिन हिन्दू धर्म की दृष्टि से जिसकी आस्था हिन्दू धर्म में न हो, श्रुति(वेद) में ना हो वो नास्तिक कहा जाता है। बात स्पष्ट है।

लेखन : मुशर्रफ़ अहमद

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