क़ुरान मैं यह कहीं नहीं लिखा कि औरतों को बुर्के या हिजाब मैं ही रहना है या किसी को अपना चेहरा किसी हाल मैं नहीं दिखाना है और ना ही इस्लाम मैं ऐसी किसी ख़ास ड्रेस को पहनना ज़रूरी किया गया है इस्लाम केवल यह आदेश देता है कि जब महिलाएं ग़ैर मर्दो के सामने जाये तो उनका लिबास या पहनावा(Modest ) शरीफो वाला हों जिससे अंग प्रदर्शन ना होता हो… यह इस्लाम की उसूली बात है पर्दा अपनी मर्ज़ी से होता है कोई किसी को ज़बरदस्ती दीन पर अमल नहीं करा सकता…
क़ुरआन के अंदर जो ”लिबास” शब्द है वह 20 आयतों में तकरीबन 23 बार आया है और इनमें कहीं भी क़ुरआन इस तरह की बात नहीं करता है कि आपके कपड़ों की लम्बाई कितनी हो व कपड़ों का रंग कैसा हो या आपके कपड़ों का डिज़ाईन कैसा हो …
उधाहरण क़ुरआन की ”सूरह अराफ़ आयत 26”…देखिये. …..
हम जानते ही हैं असल में जो लिबास है/ खान-पान है या बोल चाल है यह सब चीज़ कल्चर का हिस्सा होतीं हैं और अलग अलग जगहों के अलग- अलग कल्चर(संस्कृति)हो सकते हैं
लिहाज़ा यह निष्कर्ष निकला कि इस्लाम में लिबास का कोई कलर/लम्बाई/डिज़ाईन नहीं बताया गया बल्कि अलग अलग जगह/संस्कृति के हिसाब से भिन्न भिन्न होगा…..
यही बात बुर्क़े या हिजाब से संदर्भ में Apply होती है.(क़ुरआन व हदीस में कहीं भी बुर्क़ा/हिजाब शब्द नहीं)… बुर्क़ा कोई इस्लामी पहनावा नहीं अपितु तक़्वे का लिबास है जो संस्कृति के हिसाब से अपना लिया गया है
लेखन : फ़ारूक़ खान