पहले यह देखें क़ुरआन क्या कहता है…
“”ऐ लोगों अपने पालने वाले से डरो जिसने तुम सबको (सिर्फ) एक शख्स से पैदा किया और (वह इस तरह कि पहले) उनकी बाकी मिट्टी से उनकी बीवी (हव्वा) को पैदा किया और (सिर्फ़) उन्हीं दो (मियॉ बीवी) से बहुत से मर्द और औरतें दुनिया में फैला दिये और उस ख़ुदा से डरो जिसके वसीले से आपस में एक दूसरे से सवाल करते हो और क़तए रहम से भी डरो बेशक ख़ुदा तुम्हारी देखभाल करने वाला है (1) सूरह निसा आयत:1 अब इस आयत में कहीं भी यह बात नहीं आई कि अल्लाह नें अपने बंदों में भाई बहनों को आपस में शादी करनें आदेश दिया हो असल में यहां पर आमतौर पर सिर्फ अंदाज़ा लगाया जाता है यानि लोग आम तौर पर अंदाज़ा लगाते हैं assume करते हैं कि जब आदम अ.स थे तो उनके बाद कोई तो तरीक़ा रहा होगा जिससे नस्ल आगे बड़ी हो…तो जूंकि जवाब कोई नहीं रहता है इसलिये यह अंदाज़ा लगा लिया जाता है या मान लिया जाता है कि हो सकता है कि उस वक़्त के जो लोग रहे होंगे उन्होंनें आपस में शादी की होगी…
अगर बात अंदाज़े की ही हो तो उस लिहाज़ से तो यहां पर दो संभावनायें बनती हैं पहली संभावना कि शायद यह अंदाज़ा सही हो (आपस में शादी करनें वाला)/ या यही हुआ हो दूसरी संभावना कि ऐसा (आपस में शादी), हुआ ही ना हो यानि कोई दूसरा तरीक़ा/संभावना रहा हो नस्ल को आगे बड़ानें का…
जूंकि क़ुरआन व हदीस इस मामले में ख़ामोश है व साइंस भी अभी तक इस संबंध में कोई ठोस प्रमाण नहीं दे पाया है तो यह एक Suspicious (शंकास्पद) विषय बन जाता है..यनि यहां कुछ भी संभव(possible) है /कोई भी possibility हो सकती है….
..मतलब यह भी हो सकता है कि उस वक़्त आपस में शादियां हुंई हों व उससे नस्ल आगे बड़ी हो व यह भी हो सकता है कि ऐसा ना हुआ हो व कुछ और तरीक़ा रहा हो नस्ल को आगे बड़ाने का……
दूसरा तरीक़ा(आपस में शादियां ना हुई हों) इसलिये भी संभव है कि हम जानते हैं अल्लाह नें हज़रत आदम अ.स बिना माँ/बाप के पैदा किया था और हज़रत ईसा अ.स भी बिना बाप के पैदा किये गये(बक़ौल क़ुरआन).. तो हो सकता है कि इसी तरह अल्लाह का कोई और निज़ाम/system
रहा हो ….
और पहली संभावना भी हो सकती है कि आपस में शादी करनें का हुक्म हुआ हो..क्योंकि ज़ाहिर सी बात है कि दीन में जो शरियत होती है या जो क़ानून का हिस्सा होता है वह time to time थोड़ा बहुत तब्दील(change) होता रहता है…
शुरू के वक़्त में शरियत तो नहीं थी सिर्फ humanity थी यानि क़ानून तो बिल्कुल नहीं था ..ज़ाहिर सी बात है जब कोई समाज बनता है या society बनती है तब ही क़ानून का कोई वजूद रह जाता है जहां पर कोई समाज ही ना हो वहां क़ानून का कोई औचित्य नहीं….जैसा कि आज हर धर्म की आपनी शरियत/क़ानून है….
लिहाज़ा अगर यह possibility (आपस में शादी) रही हो तो यह उस वक़्त के हिसाब से सही रहा हो…कुछ भी संभव है हम दावे के साथ नहीं कह सकते कि ऐसा(आपस में शादी)
आ ही हो…
लेकिन में तो यह कह रहा हुं क़ुरआन तो कहीं यह नहीं कहता कि अल्लाह नें भाई/बहन को आपस में शादी करनें का हुक्म दिया हो जबकि क़ुरआन नें तो एक सीधी सी guideline दे दी है (सूरह निसा आयत 15-16) में कि किन से शादी जायज़ है और किन से नहीं और उस ही आदेश के हिसाब से हमारी शरियत/क़ानून व सोच है….अब उस वक़्त क्या हुआ अल्लाह ही बेहतर जानता है हम अपनी अक़्ल व क़यास/पूर्वानुमान(Assumption) से किसी ठोस नतीजे (conclusion) पर नहीं पहुंच सकते…..
Allah knows best…
लेखन : फ़ारूक़ खान