अक्सर देखा जाता है हमारे हिन्दू भाई यह सवाल उठाते है कि ”सलाम” करनें पर मुस्लिम भाई सलाम का जवाब क्यूं नहीं देते या ”वअलसेकुम अस्सलाम” क्यूं नहीं बोलते….और यह धारणा बना लेते हैं कि मुस्लिम कट्टर होते हैं और व्यवहारिक नहीं होते…

  • Post author:
  • Post category:Uncategorized
  • Post comments:0 Comments

सबसे पहले यह जाननें की कोशिश करते हैं कि ऐसा क्यूं है…
ज़्यादतर देखा जाता है मुलसमान भाईयों की यह धारणा होती है कि ”सलाम” ”अस्सलामु अलयेकुम” / ”वअलयेकुम अस्सलाम” जैसे शब्द या जवाब किसी ग़ैर मुस्लिम के लिये जायज़ नहीं … वह इसलिये कि ऐसे मुसलमान भाईयों का तर्क यह होता है किसी गैर मुस्लिम के लिये दुआ या मग़फिरत नहीं मांगी जा सकती (जैसा कि हम जानते हैं ”सलाम” एक तरह से दुआ ही है)
और तो और ”सलाम” करनें के विरुद्द मौजूद ढेरों फतवे भी आग में घी डालनें का काम करते हैं
आईये जानते हैं हक़ीकत क्या है….
अक्सर मुसलमान भाईयों का यह दावा होता है कि पैगम्बर मौहम्मद(स.व) नें ग़ैर मुस्लिमों को सलाम करनें से मना फरमाया है और यह भी कहा है कि जब कोई तुमको सलाम करे तो जवाब में सिर्फ ”’वाअलयेकुम”’ कहो..
…जबकि हक़ीकत कुछ और है….

असल मैं ऐसा दावा करनें वाले दो हदीसों को चिन्हित कर के अपना तर्क देते हैं…….जो निम्न हैं..
1)””अबु हुररह फरमाते हैं नबी स.व नें फरमाया यहूदी और नासार को उनके सलाम करनें से पहले सलाम मत करो.. (सही मुस्लिम, किताब 026, हदीस 5389 ),”

2)””हज़रत आयशा (र.अ) फरमातीं हैं एक बार एक यहूदी नबी(स.व) की बारगाह मैं हाज़िर हुआ और नबी(स.व) को कहा ऐ अबुल कासिम(कुन्नियत) ”अस-सामु-अलयेकुम” (तुम पर मौत हो)(नऊज़ुबिल्लाह) , इस पर नबी (स.व) नें जवाब में फरमाया ”वअलयेकुम”(तुम पर भी), आयशा(र.अ) फरमातीं हैं मेंनें उसको(यहूदी),कहा तुम पर मौत और लानत हो….इस पर आप नें फरमाया आयशा (र.अ) कठोर शब्द इस्तेमाल मत करो …हज़रत आयशा र.अ नें कहा क्या आपनें नहीं सुना उसनें क्या कहा…आपनें फरमाया क्या मेंनें उसको जवाब नहीं दिया””.. (सही मुस्लिम किताब 026, हदीस 5386)

इन हदीसों की बुनियाद पर लोग यह निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि ग़ैर मुस्लिम को सलाम नहीं करना चाहिये और जवाब में ”वअलयेकुम” बोलना चाहिये.. बस यहीं से सारी बात शुरू होती है गुमराह होनें की जब मुस्लिम भाई कुरआन की शिक्षा को भूल कर हदीस को कुरआन की रौशनी मैं देखे बग़ैर सीधे निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं…यह जाने बिना कि किस ख़ास आवरण मैं और ख़ास किसके लिये यह हदीस कही गयी…

विश्लेषण…..
पहली हदीस दरअसल सिर्फ उसी वक़्त के लोगों(बनु क़ुरैजा) के लिये थी जो उस दौर मैं मुसलमानौं के सबसे कट्टर दुशमन थे..जिनका ईमान लाना लगभग नामुमकिन था….अब अगर इस हदीस को ही आधार मान लिया जाये तो यह हदीस तो सिर्फ यहूद(Jews) और नासार(Christians) को ही केन्र्दित करती है शेष संसार की दूसरी कोमौं हिन्दू/जैन/सिख/बौद्ध/पारसी के लिये क्या तर्क होगा…शायद कोई तर्क नहीं… लिहाज़ा यहां यह बात स्पष्ट हो जाती है कि यह हदीस सिर्फ विशेष परिस्तिथी और जाति विशेष के लिये ही थी…न कि समस्त
मानव जाति के लिये….

दूसरी हदीस में नबी (pbuh) नें ”वअलयेकुम”(same to u) किस परिस्तिथि में कहा….यह घ्यान रखना ज़रूरी है… जब यहूदी नें आपको (death be upon you) से greed किया तो पलटकर आपनें उसको जवाब दिया…वअलयेकुम कहकर… .”वअलयेकुम” एक ख़ास परिस्तिथी व व्यक्ति के लिये था न की सारे ग़ैर मुस्लिमों के लिये जो क़यामत तक आयेंगे…

अब आप ख़ुद सोचिये ….. क्या आपके आस पास कोई ग़ैर मुस्लिम भाई आपको ”अस-सामु अलयेकुम” (death be upon you), कहता है जो आप उसको पलट कर ”वअलयेकुम” (Same to you),कहेंगे…..
नहीं हरगिज़ नही कोई नहीं कहता…. ….


आइये अब देखते हैं कुरआन क्या कहता है…..
1)…और जब किसी से कोई बुरी बात सुनी तो उससे किनारा कश रहे और साफ कह दिया कि हमारे वास्ते हमारी कारगुज़ारियाँ हैं और तुम्हारे वास्ते तुम्हारी कारस्तानियाँ (बस दूर ही से) तुम्हें सलाम है हम जाहिलो (की सोहबत) के ख्वाहॉ नहीं…(Surah Qasas ayat 55)
2)… और (ख़ुदाए) रहमान के ख़ास बन्दे तो वह हैं जो ज़मीन पर फिरौतनी के साथ चल नहीं किया गया स्पष्ट है संपूर्ण मानवजाति के लिये यह बात कही गयी चाहे वह मुस्लिम हो या ग़ैर मुस्लिम…बल्कि कुरआन तो हमको ख़ुद आदेश दे रहा है कि सलाम करो और जवाब दो चाहे कोई भी हो….
निष्कर्ष ::: ग़ैर मुस्लिम को सलाम किया और जवाब दिया जा सकता है….

लेखन : फ़ारूक़ खान

Leave a Reply