उत्तर……..
सर्व प्रथमः जहाँ तक अल्लाह/ईश्वर तआला के अस्तित्व के प्रमाणों का प्रश्न है तो ये सोच विचार करने वाले के लिए स्पष्ट हैं, बहुत अधिक खोज और लंबे सोच विचार की आवश्यकता नहीं है, विचार करने से पता चलता है कि वे तीन प्रकार के हैं :
1).प्राकृतिक प्रमाण,
2).हिस्सी (इन्द्रिय-ज्ञान और चेतना संबंधी) प्रमाण और
3).शरई (धार्मिक) प्रमाण।
प्राकृतिक प्रमाण :
अल्लाह के अस्तित्व पर प्रकृति (फित्रत) का तर्क उस आदमी के लिए सब से मज़ूबत प्रमाण है, इसी लिए अल्लाह तआला ने अपने कथन : (आप एकांत हो कर अपना मुँह दीन की ओर कर लें।) के बाद फरमाया है :
“अल्लाह तआला की वह फित्रत (प्रकृति) जिस पर उस ने लोगों को पैदा किया है।” (सूरतुर्रूम : 30) अत: फित्रते सलीमा (शुद्ध प्रकृति) अल्लाह के वजूद की गवाही देती (साक्षी) है, और इस प्रकृति से वही आदमी मुँह मोड़ सकता है जिसे शैतानों ने भटका दिया हो, या जिसे अपने तार्किक प्रश्नों का उत्तर न ं्ा हो ..और जिसे शैतानों ने भटका दिया है वह इस प्रमाण और तर्क को नकार सकता है क्योंकि इंसान अपने दिल में इस बात का अनुभव करता है कि उसका एक पालनहार और सृष्टा है और वह उसकी आवश्यकता का एहसास करता है, और जब किसी बड़े भंवर में फंसता है, तो उसके दोनों हाथ, दोनों आँखें और उसका दिल आसमान की ओर आकर्षित हो जाता है, वह अपने पालनहार से सहायता और मदद मांगता है।
हिस्सी (इन्द्रिय संबंधी) प्रमाण :
सार्वलौकिक घटनाओं का अस्तित्व में आना, वह इस प्रकार कि हमारे आस पास के लोक और संसार में आनिवार्य रूप से विभिन्न प्रकार की घटनायें अस्तित्व में आती हैं, उन घटनाओं में सर्वप्रथम सृष्टि (उत्पत्ति) की घटना है, अर्थात् चीज़ों की पैदाइश की घटना है, सारी चाज़ें; पेड़, पत्थर, मनुष्य, धरती, आकाश,समुद्र, सागर. यदि कहा जाये कि इन घटनाओं और इन के अलावा अन्य ढेर सारी घटनाओं को किसने अस्तित्व में लाया है और उन पर नियंत्रण करता है? तो उसका उत्तर या तो यह होगा कि ये बिना किसी कारण के सहसा अस्तिव में आ गया हैं, तो ऐसी अवस्था में कोई भी नहीं जानता कि इन चीज़ों का अस्तित्व कैसे हुआ है, यह एक संभावना है। एक दूसरी संभावना यह है कि इन चीज़ों ने स्वयं ही अपने आप को पैदा कर लिया है और उन पर नियंत्रण रखती हैं। तथा एक तीसरी संभावना भी है और वह यह है कि इन चीज़ों का एक अविष्कारक है जिस ने इनका अविष्कार किया है और उनका एक सृष्टिकर्त्ता है जिस ने इन की रचना की है, इन तीनों संभावनाओं में सोच विचार करने के बाद हम पाते हैं कि पहली और दूसरी संभावनायें नामुमकिन और असम्भव हैं, और जब पहली और दूसरी संभावनायें नामुमकिन हो गयीं, तो अनिवार्य रूप से यह सिद्ध हो गया कि तीसरी संभावना ही ठीक और स्पष्ट है
कि इन चीज़ों का एक सृष्टिकर्त्ता है जिसने इन को पैदा किया है और वह अल्लाह तआला है, और इसी चीज़ का क़ुर्आन में उल्लेख हुआ है, अल्लाह तआला ने फरमाया : “क्या ये लोग बिना किसी पैदा करने वाले के ही पैदा हो गये हैं या ये स्वयं उत्पत्तिकर्ता (पैदा करने वाले) हैं? क्या इन्हों ने आकाशों और धरती को पैदा किया है? बल्कि यह विश्वास न करने वाले लोग हैं।” (सूरतुत्तूर: 35-36) फिर ये सभी सृष्ट वस्तुयें किस समय से मौजूद हैं? इन पूरे वर्षों के दौरान उनके लिए इस दुनिया में बाक़ी रहना किसने सुनिश्चित किया है और उनके बाकी रहने के कारणों का किसने प्रबंध किया है? इसका उत्तर है अल्लाह ने, उसी ने हर चीज़ को उसका सुधार करने और उसके बरक़रार रहने को सुनिश्चित करने वाली चीज़ें प्रदान की हैं, क्या आप उस सुंदर हरे पौधे को नहीं देखते कि जब अल्लाह उसके पानी को रोक ले तो क्या उसके लिये जीना संभव होता है? कदापि नहीं, बल्कि वह सूख जायेगा, इसी तरह हर चीज़ के अन्दर जब आप सोच विचार करेंगे तो उसे अल्लाह तआला से संबंधित पायेंगे, सो अगर अल्लाह न होता तो चीज़ें बाक़ी न रहतीं। फिर देखिये कि अल्लाह ने इन चीज़ों को किस प्रकार से सुधारा और संवारा है, हर चीज़ का सुधार उसके अनुकूल और मुनासिब है, उदाहरण के तौर पर ऊँट सवारी के लिए है, अल्लाह तआला फरमाता है : “क्या वे नहीं देखते कि हम ने अपने हाथों बनायी हुई चीज़ों में से उन के लिए चौपाये (पशु भी) पैदा कर दिये, जिन के ये मालिक हो गये हैं। और उन जानवरों को हम ने उन के वश में कर दिया है जिन में से कुछ तो उनकी सवारियाँ हैं और कुछ (का मांस) खाते हैं।” (सूरत यासीन :71-72) ऊँट को देखिये कि अल्लाह तआला ने उसे किस तरह ताक़तवर और उसकी पीठ को बराबर बनाया है ताकि सवारी के लिये और दुर्लभ कठिनाईयों को सहन करने के लिए योग्य हो जिन्हें उसके अलावा कोई दूसरा जानवर सहन नहीं कर सकता। इसी तरह अन्य मख्लूक़ात के अंदर आप अपनी निगाह दौड़ायेंगे तो उन्हें उस चीज़ के अनुकूल पायें गे जिस के लिए वो पैदा की गई हैं। अत: अल्लाह तआला बहुत पाक व पवित्र है। हिस्सी प्रमाणों के उदाहरणों में से वो घटनायें भी हैं जो किसी कारणवश घटती हैं जो अल्लाह के मौजूद होने का पता देती हैं, उदाहरण के तौर पर अल्लाह तआला से दुआ करना, फिर अल्लाह
तआला का दुआ को स्वीकार करना, अल्लाह के मौजूद होने पर तर्क और प्रमाण हैं।
शरई (धार्मिक ) प्रमाण :
सभी शरीअतें (धर्म शास्त्र) खालिक़ (सृष्टिकर्त्ता) के अस्तित्व, तथा उसके संपूर्ण ज्ञान, हिक्मत (तत्वदर्शिता) और दया व करूणा पर तर्क हैं, क्योंकि इन शरीअतों का कोई एक रचयिता (शास्त्रकार) होना आवश्यक है, और वह शास्त्रकार अल्लाह है।
उस ने हमें अपनी उपासना, शुक्र और ज़िक्र करने के लिए, तथा जिस चीज़ का अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने हमें आदेश दिया है उस को अंजाम देने के लिए पैदा किया है, और आप जानते हैं कि मनुष्यों मे मुस्लिम भी हैं और ग़ैर मुस्लिम भी, और यह इसलिए है कि ताकि अल्लाह तआला बन्दों को जाँचे और उनकी परीक्षा करे कि क्या वे अल्लाह की उपासना करते हैं या उसके अलावा किसी दूसरे को पूजते हैं। और यह सब कुछ अल्लाह तआला ने रास्ते को स्पष्ट कर देने के बाद किया है, जैसा कि अल्लाह तआला का फरमान है :”जिस ने मृत्यु और जीवन को पैदा किया ताकि तुम्हें जाँचे कि तुम में से कौन सब से अच्छा अमल करने वाला है।” (सूरत तबारक :2) तथा अल्लाह ताअला ने एक दूसरे स्थान पर फरमाया :”मैंने जिन्नात और मनुष्य को मात्र इसलिए पैदा किया है कि वो मेरी उपासना करें।” (सूरतुज्ज़ारियात :56)
‘‘सम्पूर्ण तारीफें उस अल्लाह के लिए हैं जिस की तारीफ तक बोलने वालों की पहुंच नहीं। जिस की रहमतों को गिनने वाले गिन नहीं सकते। न कोशिश करने वाले उसका अधिकार चुका सकते हैं। न ऊंची उड़ान भरने वाली हिम्मतें उसे पा सकती हैं। न दिमाग और अक्ल की गहराईयां उस की तह तक पहुंच सकती हैं। उस के आत्मिक चमत्कारों की कोई हद निश्चित नहीं। न उस के लिए तारीफी शब्द हैं। न उस के लिए कोई समय है जिस की गणना की जा सके। न उस का कोई टाइम है जो कहीं पर पूरा हो जाये। उस ने कायनात को अपनी कुदरत से पैदा किया। अपनी मेहरबानी से हवाओं को चलाया। कांपती हुई जमीन पर पहाड़ों के खूंटे गाड़े। दीन की शुरुआत उस की पहचान है। पहचान का कमाल उसकी पुष्टि है। पुष्टि का कमाल तौहीद(ऐकेश्वरावाद)है। तौहीद का कमाल निराकारता है और निराकारता का कमाल है कि उससे गुणों को नकारा जाये। क्योंकि हर गुण गवाह है कि वह अपने गुणी से अलग है और हर गुणी गवाह है कि वह गुण के अलावा कोई वस्तु है। अत: जिस ने उस के आत्म का कोई और साथी माना उसने द्विक उत्पन्न किया। जिसने द्विक उत्पन्न किया उसने उसके हिस्से बना लिये और जो उसके लिए हिस्सों से सहमत हुआ वह उससे अज्ञानी रहा और जो उससे अज्ञानी रहा उसने उसे सांकेतिक समझ लिया। और जिसने उसे सांकेतिक समझ लिया उस ने उसे सीमाबद्ध कर दिया और जिसने उसे सीमित समझा वह उसे दूसरी वस्तुओं की पंक्ति में ले आया। जिस ने यह कहा कि वह किसी वस्तु में है उसने उसे किसी प्राणी के सन्दर्भ में मान लिया और जिसने यह कहा कि वह किसी वस्तु पर है उस ने और जगहें उस से खाली समझ लीं।
वह है, हुआ नहीं। उपस्थित है लेकिन आरम्भ से वजूद में नहीं आया। वह हर प्राणी के साथ है लेकिन शारीरिक मेल की तरह नहीं है। वह हर वस्तु से अलग है लेकिन शारीरिक दूरी के प्रकार से नहीं। वह कर्ता है लेकिन चेष्टा और उपकरणों पर निर्भर नहीं है। वह उस वक्त भी देखने वाला था जब कि सृष्टि में कोई वस्तु दिखाई देने वाली न थी। वह असम्बद्ध है इसलिए कि उसका कोई
साथी ही नहीं है जिससे वह अनुराग रखता हो और उसे खोकर परेशान हो जाये। उसने पहले पहल सृजन का आविष्कार किया बिना किसी चिंतन की बाध्यता के और बिना किसी अनुभव के जिससे लाभ उठाने की उसे आवश्यकता पड़ी हो और बिना किसी चेष्टा के जिसे उसने पैदा किया हो और बिना किसी भाव या उत्तेजना के जिससे वह उत्सुक हुआ हो। हर चीज को उसके वक्त के हवाले किया। बेजोड़ वस्तुओं में संतुलन और समरूपता उत्पन्न की। हर वस्तु को भिन्न तबीयत और प्रकृति सम्पन्न बनाया। और इन प्रकृतियों के लिए उचित परिस्थितियां निर्धारित कीं।
….यह है अल्लाह/ईश्वर के होंनें का प्रमाण…..
उम्मीद है में अपना पक्ष सही से ऱख पाया हुं…
लेखन: फ़ारूक़ खान