शायरी करना या सुनना, संगीत सुनना या बजाना, डांस करना या देखना, एक्टिंग करना या देखना, ग़ज़ल गाना या सुनना, विडियो गेम खेलना या देखना या कोई और खेल खेलना या देखना ये सब चीजें अपने आप में बिलकुल जायज़ हैं. लेकिन इनका गलत इस्तिमाल इनको हराम कर सकता है जो कि आज कल अक्सर होता है.
देखए कुरआन की सूरेह आराफ 33 में अल्लाह ने फरमाया है कि उसने खाने पीने के अलावा सिर्फ और सिर्फ पांच केटेगरी की चीज़ों को हराम किया है. वो ये हैं.
- बेशर्मी, बेहयाई चाहे वो छुपी हो या खुली.
- किसी का हक मारना. चाहे वो कैसा भी हो.
- हर तरह का ज़ुल्म.
- किसी को बिना हक अल्लाह का साझी करार देना. चाहे मामूली सी बात में ही क्यों ना हो.
- अल्लाह की तरफ से ऐसी कोई बात कहना जो अल्लाह ने नहीं कही. यानि धर्म में कोई छोटी या बड़ी बात अपनी तरफ से ऐड कर देना या बदल देना.
ये आयत एक कसौटी की तरह है जिस पर हर चीज़ को परख कर देखा जा सकता है कि उस चीज़ की क्या हैस्यत है.
अब आप इनमे से एक चीज़ जैसे डांस ही को लेकर इस कसौटी पर परखये. इस कसौटी पर सिर्फ वही खरा उतर सकेगा जिस डांस में किसी तरह की बेहयाई न हो यानि अंग प्रदर्शन न हो कोई अश्लील इशारा न हो पूरा लिबास पहना गया हो विपरीत लिंग को आकर्षित ना करता हो गैर मर्द और औरत एक साथ ना होते हों, उसमे कोई धार्मिक चीज़ ना हो या उसकी वजह से किसी को परेशानी ना हो रही हो.
ऐसा डांस शायद ही कोई होता होगा जिसमे इनमे से कोई चीज़ ना पाई जाती हो. अगर होता है तो वो जायज़ है इस्लाम को उस पर कोई आपत्ति नहीं है.
ऐसे ही आप एक्टिंग को ले सकते हैं उसमे भी देखए कि इनमे से कोई चीज़ पाई जाती है या नहीं उस अभिनय से किसी तरह की किसी अनैतिक बात को बढ़ावा तो नहीं मिल रहा, किसी हराम चीज़ का प्रचार तो नहीं हो रहा जैसे शराब वगैरह, किसी झूटी बात को सच बता कर तो पेश नहीं किया जा रहा वगैरह.
ऐसे ही आप शायरी को ले सकते हैं ज़ाहिर है उसकी भी सामग्री देख कर ही बताया जा सकता है कि उसमे क्या चीज़ गलत है और क्या सही है, मापदण्ड वही होगा जो इस आयत में बताया गया है. लेखन : मुशर्रफ़ अहमद