प्रश्न को थोड़ा और विस्तार दिया जाये तो बात कुछ इस तरह होगी कि आपने कहा ”हम हिन्दू मूर्ति पूजा करते है जो इस्लाम मैं हराम है”.. सर मूर्ति पूजा इस्लाम मैं ही हराम नहीं बल्कि ईश्वर के धर्म मैं ही हराम है.. ईश्वर एक है इसलिए उसका उसका बनाया धर्म भी सबके लिए एक ही है.. ऐसा नहीं है कि ईश्वर नें कुछ को मुसलमान बनाया कुछ को हिन्दू कुछ को सिख व कुछ को नास्तिक.. etc..स्वयं तर्क लगाए क्या यह किसी भी तरह तर्क संगत होगा कि एक ही ईश्वर मुसलमानों से कहे मेरी मूर्ति बना कर नहीं पूजो और हिन्दुओं से कहे मेरी मूर्ति बना कर पूजो.. असल मैं ईश्वर नें किसी से नहीं कहा कि मेरी मूर्ति बनाओ… जो मूर्ति पूजा करते ही ख़ुद सनातन धर्म के विपरीत करते है क्यूंकि सनातन धर्म पूर्ण रूप से मूर्ति पूजा का खंडन करता है (आर्य समाजी इसका उदाहरण है, आर्य समाज मन्दिर मैं ईश्वर की कोई प्रतिमा/मूर्ति नहीं होती),ईश्वर का धर्म एक ही है उस धर्म को ही हम संस्कृत मैं सनातन या शाश्वत धर्म कहते हैं, अरबी मैं इस्लाम या दीन ए क़य्यूम कहते हैं, उस ही धर्म का नाम इंग्लिश मैं रिलिजन ऑफ़ पीस हैं…मूर्ति पूजा सनातन धर्म मैं पूरी तरह निषेध है, मूर्ति पूजा के पक्ष मैं वेदों मैं एक भी मंत्र आपको नहीं मिलेगा अगर कोई मूर्ति पूजा करता है तो वह ईश्वर के धर्म की ही अवहलेना हर रहा है वह ख़ुद ईश्वरीय धर्म पर नहीं….रहा सवाल ईश्वर किसके साथ क्या मामला करेगा… सीधी सी बात है ईश्वर सारे धर्मो के लोगों के साथ आपने एक ही विधान के तहत मामला करेगा.. उसका बनाया हुआ विधान एक ही है… विधान यह है कि हम उसके बताये मार्ग पर चले .. उसके बताये तरीके पर जीवन गुज़ारे ,.. उसके मार्गदर्शन पर चलें तो इनाम स्वरुप वह हमको हमेशा का सुख/स्वर्ग मिलेगा… अगर इसके विपरीत ईश्वर के विरुद्ध गये उसके मार्गदर्शन को नहीं मना उसके शिक्षाओं का तिरस्कार किया तो हमारे लिए नरक है… ख़ुद फैसला कीजिये आप ईश्वर के धर्म सम्मत क्या कर रहे है और ईश्वर के साथ आपका क्या मामला है या होगा…रही बात इस्लाम के नज़रिये से मूर्ति पूजको के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिये… अंतिम वेद/क़ुरान मैं यही कहा गया है किसी के धर्म को बुरा मत कहो(सूरह अल अनाम आयत 108), सबके साथ अच्छा बर्ताव करो.. किसी का दिल मत दुखाओ etc… जिस ईश्वरीय परीक्षा से आप गुज़र रहे है मुसलमान भी उस ही परीक्षा से गुज़र रहे हैं
(फ़ारूक़ खान)