जहां तक मेरी जानकारी है इस्लाम के अनुसार इंसान का केवल एक जन्म होता है। इस्लाम में पुनर जन्म को नहीं मानते ।उदाहरण के तौर पर अगर किसी इंसान को जन्मजात बीमारी है जिसके कारण वो दुःख भोगता है अल्प आयु में मृत्यु को प्राप्त होता है तो इसमें उस व्यक्ति के साथ ज़्यादती नहीं है कि उससे एक ही जीवन मिला वो भी ऐसा ।इस्लाम में इस तरह के उदाहरण को किस तरह से समझाएँगे कृपया प्रकाश डालिये।

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जन्म से कुछ खराबी होना ठीक ऐसे ही बीमारियों की वजह से होता है जैसे जन्म के बाद किसी बिमारी से किसी का कोई अंग ख़राब हो जाए.
सही दवा, रहन सहन, प्रदूषण से बचना और सेहत का अच्छा ख्याल रख के इस तरह की बहुत सी चीज़ों पर काबू पाया जा सकता है, ऐसे ही आप जानते हैं कि गर्भवती माँ का भी ख्याल रखने की बहुत ज़रूरत होती है अक्सर बिमारियाँ और कमजोरियां माँ से ही बच्चे में आजाती हैं.
यह तो मैंने आप को एक जनरल बात बताई जो आप पहले से ही जानते और मानते हैं, बस ध्यान दिलाना मेरा मकसद था ताकि लोग गर्भ अवस्था में माँ का ख्याल रखना ही ना बंद करदें और हमारी आने वाली नस्ल कई खराबियों के साथ पैदा हो, और लोग उसे अपनी गलती समझने के बजाय पुनर जनम के पाप ही समझते रहें.
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जहाँ तक जनम से या जनम के बाद अपंग बच्चे या बड़े का सवाल इस्लाम के हवाले से है तो वो किसी पाप की वजह से नहीं बल्कि किसी बिमारी, कमज़ोरी या हमारी किसी लापरवाही वगैरह की वजह से है. आप इस जगह पर यह सवाल कर सकते हैं कि ठीक है बच्चे की बिमारी की कोई नस्ली या जिस्मानी लापरवाही वजह हो सकती है लेकिन बच्चे के लिए तो वह एक मुसीबत ही है और उसका जुम्मेदार भले ही सारी दुनिया हो लेकिन वो बच्चा खुद तो जुम्मेदार नहीं है, तो उसके साथ अल्लाह का क्या मामला है ?


तो यह सवाल बिलकुल ठीक है और इसका जवाब बहुत छोटा सा लेकिन बहुत ध्यान देने के लायक है वो यह कि ”अल्लाह ने यह दुनिया इम्तिहान के उसूल पर बनाई है और यह दुनिया इम्तिहान के उसूल पर ही चल रही थी, चल रही है और क़यामत तक इम्तिहान के उसूल पर ही चलती रहेगी.”
आप गौर कीजये तो यह बात बहुत आसानी से समझ में आजाएगी कि आप हर वक़्त एक इम्तिहान से गुज़र रहे होते हैं, जैसे आप एक पति हैं तो यह आप का इम्तिहान है कि आप अपनी पत्नी के कितने हक अदा करते हैं और कितने नहीं करते. ऐसे ही आप एक ही वक़्त में किसी के बेटे, भाई, दोस्त, पड़ोसी, नौकर या समाज के नागरिक हैं यह आप के कुछ रोल हैं जो खुदा ने आप को दिये हैं इन को आप कैसे निभाते हैं यही आप का इम्तिहान है, और आप की हर एक हरकत अल्लाह के यहाँ नोट की जारही है.


ऐसे ही आप के ऊपर अच्छे बुरे आने वाले सब हालात भी इम्तिहान होते हैं जिन में आप को अपना रवैय्या सही रख कर पास करना होते हैं. मेरी इस बात पर खास गौर कीजयेगा कि मैंने सब अच्छे भी और बुरे हालात लिखा है.


अगर आप तंदुरुस्त हैं अमीर हैं इज्ज़त और रुतबे वाले हैं तो आप का इम्तिहान उससे ज़्यादा मुश्किल है जो बीमार है गरीब है जिसकी समाज में कोई इज्ज़त नहीं, क्यों कि ताकत मिलने से ही जुम्मेदारीयां भी उसी हिसाब से बढ़ जाती हैं.
फिर एक दिन इस दुनिया को खत्म होना है उसे हम क़यामत का दिन कहते हैं, उस दिन एक अदालत लगेगी और उस वक़्त जज खुद काएनात का रब होगा. वही दिन असल में आप के हर इम्तिहान का रिज़ल्ट और उसका फल मिलने का दिन है. उस दिन जो मुसीबतें और मुश्किलें आप पर कुदरत की तरफ से हों या किसी और तरफ से उसका फल दे दिया जाएगा, यहाँ तक कि जो दर्द माँ ने अपने बच्चे को जनम देते हुए सहा है उसका भी इतना ज़्यादा अच्छा फल दिया जाएगा कि कोई माँ सोच भी नहीं सकती थी. बस यही पूरी बात है और आप के सवाल का जवाब भी. यानि इस्लाम में दूसरा जन्म तो है लेकिन वो इस दुनिया में नहीं बल्कि दूसरी दुनियां में होगा और वहां इंसान हमेशा रहेंगे, इस दुनियां में अगर किसी इंसान ने बिना अपनी किसी गलती के कुदरत के या दूसरों के कारण कोई कष्ट भोगा है कोई दुःख सहना पड़ा है तो उसके बदले उसे वहां बहुत कुछ दिया जाएगा.
लेखन : मुशर्रफ़ अहमद

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