इस्लाम मे ” मुताअ” क्या है ?

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मुताह मैरिज एक कांट्रेक्ट मैरिज है जो अरब में इस्लाम पूर्व प्रचलित थी इस विवाह में विवाह एक निश्चित अवधि बाद स्वयंमेव टूट जाएगा ऐसा अनुबंध किया जाता था, वास्तव में ये स्वच्छन्द काम तृप्ति का एक तरीका था,जिसे अरब के लोगों ने विवाह का आवरण पहना दिया था.जब नबी सल्ल० का अवतरण हुआ, इस्लाम आया, तो धीरे धीरे शराब जुए और मुताहः जैसे अन्यायपूर्ण और खराब रिवाजों को खत्म कर दिया गया,इन रिवाजों को एक झटके में खत्म इसलिये नही किया गया क्योंकि ऐसा करने पर लोग अपनी लत छोड़ नही पाते और बुरे के बुरे रह जाते, तो बजाये इसके इस्लाम ने ये तरीका अपनाया कि लोगों का मस्तिष्क धीरे धीरे भलाई की बातें आत्मसात करता जाए, और फिर जब इन बुरे रिवाजों से उन्हें रोका जाए तो वे आसानी से इन ख़राब बातों को छोड़ दें तो ऐसा विवाह जिसमे विवाह से पहले ही औरत को तलाक देने की बात तय कर दी जाए यानी कॉन्ट्रैक्ट पर शादी की जाए, यही मुताह मैरिज है, और ऐसी शादी इस्लाम मे हराम है, ऐसी शादी के हराम होने का बयान और ऐलान बहुत सी अहादीस मे है, जैसे ,सही बुखारी Vol.5/59/527, सही मुस्लिम 8/3259, सही मुस्लिम 8/3260, सही मुस्लिम 8/3262, सही मुस्लिम 8/3263, सही मुस्लिम 8/3264, सही मुस्लिम 8/3265 और अनेक अहादीस जिनमें नबी सल्ल० बार बार फरमाते हैं कि मुताह हराम है.!!और मुताह मैरिज के हराम होने की वजह पवित्र कुरान की आयत 4:24 मे अल्लाह का ये हुक्म है कि ”शादी (मर्द और औरत, दोनों की पाक दामनी यानी यौन शुचिता) पाक दामनी की हिफाज़त करने के लिए करो, न कि नाजायज ढंग से जिस्मानी ताल्लुकात बनाने के लिए ”परन्तु इस घटना से पूर्व जब मुताहः की मनाही की घोषणा नबी सल्ल० ने नही की थी व आप सल्ल० के सामने ही लोग मुताह विवाह किया करते थे, तो नबी सल्ल० अल्लाह का इस विषय में कोई आदेश अवतरित न होने के कारण इस विषय पर मौन रहते थे, इसी समय की कुछ घटनाओं का वर्णन कुछ हदीस साहित्य में है जिनके कारण शिया मुस्लिमों का एक वर्ग मुताह को इस्लाम में अनुमतिप्राप्त विवाह मानते हैं, पर विश्व में मुस्लिमों की लगभग 95 फ़ीसद आबादी सुन्नी मुस्लिमों की है जो मुताह को पूरी तरह हराम मानते हैं….

(फ़ारूक़ खान)

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