अल्लाह ने आकाश को धरती पर गिरने से रोक रखा है।(क़ुरान : सुरह 22, आयत 65)

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”’और उसने आकाश को धरती पर गिरने से रोक रखा है।(65) सूरह हज””
यह केवल एक कलात्मक अलंकारिक विवरण है? जो लोग कुरआन के वर्णन मैं गलती तलाश करते हैं वे वाग्मिता/कलात्मक विवरण एवं खूबसूरत भाषा शैली से अपरिचित होते हैं व अक्सर क़ुरआन के शाब्दिक, (Literal meaning) अर्थ को पकड़कर उसका मनचाहा अर्थ निकाल लेते हैं ऐसा ही कुछ इस आयत के साथ किया गया है…..
हम जानते ही हैं संसार की हर चीज़ एक ख़ास संतुलन को मुसलसल(बारम्बार/Continuoisly अपने अन्दर क़ायम(exist) रखती है(यानी भिन्न तबीयत/quality/propertyहोनें के बवजूद बेजोड़ वस्तुओं में संतुलन और समरूपता) अगर उनका संतुलन बिगड़ जाये तो पृथ्वी पर जीवन ही नष्ट हो जाये….


मगर अल्लाह नें हर चीज़ को एक ख़ास क़ानून(संतुलन) का पाबंद(punctual) बना रखा है जिसकी वजह से इंसान पृथ्वी पर जीवन यापन कर पाता है…
अंतरिक्ष में अनगिनत ग्रह/नक्षत्र हैं अगर संतुलन ना हो वह प्रथ्वी से या एक दूसरे से टकरा जायें और जीवन नष्ट हो जाये मगर वह ख़ास क़ानून(संतुलन) के तहत निहायत सेहत के साथ अपने कक्ष पर थमे हुऐ हैं..

…विज्ञान सम्मत है कि हर ग्रह/नक्षत्र/तारा अपनी निश्चित कक्षा में घूर्णन(तैर) कर रहा है जो कभी एक दूसरे को overlap नहीं करता…
यही इस आयत की व्याख्या है….”अल्लाह नें आकाश को धरती पर गिरनें से रोक रखा है”’ यानि ग्रह नक्षत्र/तारों को…..
(इसका छोटा सा उधाहरण हम उल्का पिण्डों से ले सकते हैं वह किस तरह हमारे वायुमंण्डल में आकर जल जाते हैं संतुलन की वजह से अगर अल्लाह नें हमारा वायुमंण्डल उल्का प्रतिरोधी ना बनाया होता तो प्रथ्वी पर जीवन उन उल्का पिण्डों की मार से नष्ट हो गया होता..)

लेखन : फ़ारूक़ खान

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